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सम्पूर्ण चाणक्य नीति (Complete Chanakya Niti In Hindi)

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Complete Chanakya Neeti In Hindi (सम्पूर्ण चाणक्य नीति)  Chanakya Neeti in Hindi - First Chapter (चाणक्य नीति - प्रथम अध्याय) Chanakya Neeti in Hindi - Second Chapter (चाणक्य नीति - दूसरा अध्याय) Chanakya Neeti in Hindi - Third Chapter (चाणक्य नीति - तीसरा अध्याय) Chanakya Neeti In Hindi - Fourth Chapter (चाणक्य नीति - चौथा अध्याय) Chanakya Neeti In Hindi - Fifth Chapter (चाणक्य नीति - पांचवा अध्याय) Chanakya Neeti In Hindi - Sixth Chapter (चाणक्य नीति - छठवां अध्याय) Chanakya Niti In Hindi - Seventh Chapter (चाणक्य नीति - सातवां अध्याय) Chanakya Niti In Hindi - Eighth Chapter (चाणक्य नीति - आंठवा अध्याय) Chanakya Niti in Hindi Ninth Chapter (चाणक्य नीति - नववा अध्याय) Chanakya Niti in Hindi Tenth Chapter (चाणक्य नीति - दसवा अध्याय) Chanakya Niti in Hindi - Eleventh Chapter (चाणक्य नीति - ग्यारहवा अध्याय) Chanakya Neeti - Twelfth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - बारहवा अध्याय) Chanakya Neeti - Thirteenth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - तेरहवा अध्याय) Chan

Chanakya Niti - Seventeenth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - सत्रहवां अध्याय)

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Chanakya Neeti - Seventeenth Chapter  (चाणक्य नीति -  सत्रहवां अध्याय) 1: जिस प्रकार पर-पुरुष से गर्भ धारण करने वाली स्त्री शोभा नहीं पति, उसी प्रकार गुरु के चरणो में बैठकर विद्या प्राप्त न करके इधर-उधर से पुस्तके पढ़कर जो ज्ञान प्राप्त करते है, वे विद्वानों की सभा में शोभा नहीं पाते क्योंकि उनका ज्ञान अधूरा होता है। उसमे परिपक्वता नहीं होती। अधूरे ज्ञान के कारण वे शीघ्र ही उपहास के पात्र बन जाते है। 2: उपकार का बदला उपकार से देना चाहिए और हिंसा वाले के साथ हिंसा करनी चाहिए। वहां दोष नहीं लगता क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना ही ठीक रहता है। 3: तप में असीम शक्ति है। तप के द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। जो दूर है, बहुत अधिक दूर है, जो बहुत कठिनता से प्राप्त होने वाला है और बहुत दूरी पर स्थित है, ऐसे साध्य को तपस्या के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अतः जीवन में साधना का विशेष महत्व है। इसके द्वारा ही मनोवांछित सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। 4: लोभ सबसे बड़ा अवगुण है, पर निंदा सबसे बड़ा पाप है, सत्य सबसे बड़ा तप है और मन की पवित्रता सभी तीर्थो में जाने से उत्

Chanakya Niti - Sixteenth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - सोलहवां अध्याय)

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Chanakya Neeti - Sixteenth Chapter  (चाणक्य नीति -  सोलहवां अध्याय) 1: संसार के उद्धार के लिए जिन लोगो ने विधिपूर्वक परमेश्वर का ध्यान नहीं किया, स्वर्ग में समर्थ धर्म का उपार्जन नहीं किया, स्वप्न में भी सुन्दर युवती के कठोर स्तनों और जंघाओं के आलिंगन का भोग नहीं किया, ऐसे व्यक्ति का जन्म माता के यौवन रूपी वन को काटने वाली कुल्हाड़ी के समान है। 2: आचार्य चाणक्य का मानना है कि कुलटा (चरित्रहीन) स्त्रियों का प्रेम एकान्तिक न होकर बहुजनीय होता है। उनका कहना है की कुलटा स्त्रियां पराए व्यक्ति से बातचीत करती है, कटाक्षपूर्वक देखती है और अपने ह्रदय में पर पुरुष का चिंतन करती है, इस प्रकार चरित्रहीन स्त्रियों का प्रेम अनेक से होता है। 3: जो मुर्ख व्यक्ति माया के मोह में वशीभूत होकर यह सोचता है कि अमुक स्त्री उस पर आसक्त है, वह उस स्त्री के वश में होकर खेल की चिड़िया की भांति इधर-से-उधर नाचता फिरता है। 4: आचार्य चाणक्य का कहना है कि इस संसार में कोई भाग्यशाली व्यक्ति ही मोह-माया से छूटकर मोक्ष प्राप्त करता है। उनका कहना है -----'धन-वैभव को प्राप्त करके ऐसा कौन है जो इस संसार में

Chanakya Neeti - Fifteenth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - पन्द्रहवां अध्याय)

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Chanakya Neeti - Fifteenth Chapter  (चाणक्य नीति -  पन्द्रहवां अध्याय) 1: जिसका ह्रदय सभी प्राणियों पर दया करने हेतु द्रवित हो उठता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा और भस्म लगाने की क्या जरूरत है ? 2: जो गुरु एक ही अक्षर अपने शिष्य को पढ़ा देता है, उसके लिए इस पृथ्वी पर कोई अन्य चीज ऐसी महत्वपूर्ण नहीं है, जिसे वह गुरु को देकर उऋण हो सके। 3: दुष्टों और कांटो से बचने के दो ही उपाय है, जूतों से उन्हें कुचल डालना व उनसे दूर रहना। 4: गंदे वस्त्र धारण करने वाले, दांतो पर मैल जमाए रखने वाले, अत्यधिक भोजन करने वाले, कठोर वचन बोलने वाले, सूर्योदय से सूर्यास्त तक सोने वाले, चाहे वह साक्षात विष्णु ही क्यों न हो, लक्ष्मी त्याग देती है। 5: निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र, स्त्री, नौकर, हितैषी जन छोड़कर चले जाते है, परन्तु पुनः धन आने पर फिर से उसी के आश्रय लेते है। 6: अन्याय से उपार्जित किया गया धन दस वर्ष तक रहता है। ग्यारहवें वर्ष के आते ही जड़ से नष्ट हो जाता है। 7: समर्थ व्यक्ति द्वारा किया गया गलत कार्य भी अच्छा कहलाता है और नीच व्यक्ति के द्वारा किया गया अच्छा कार्य भी गलत कहलाता

Chanakya Neeti - Fourteenth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - चौहदवा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Fourteenth Chapter  (चाणक्य नीति -  चौहदवा अध्याय) 1: इस पृथ्वी पर तीन ही रत्न है -----जल, अन्न, और मधुर वचन ! बुद्धिमान व्यक्ति इनकी समझ रखता है, परन्तु मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ो को ही रत्न कहते है। 2: मनुष्य के अधर्म रूपी वृक्ष (अर्थात शरीर) के फल -----दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन (मोह-माया), व्यसन आदि है। 3: धन, मित्र, स्त्री, पृथ्वी, ये बार-बार प्राप्त होते है, परन्तु मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता है। 4: यह एक निश्चित तथ्य है कि बहुत से लोगो का समूह ही शत्रु पर विजय प्राप्त करता है, जैसे वर्षा की धार को धारण करने वाले मेघों के जल को तिनको के द्वारा (तिनके का बना छप्पर) ही रोका जा सकता है। 5: पानी में तेल, दुष्ट व्यक्तियों में गोपनीय बातें, उत्तम पात्र को दिया गया दान और बुद्धिमान के पास शास्त्र-ज्ञान यदि थोड़ा भी हो तो स्वयं वह अपनी शक्ति से विस्तार पा जाता है। 6: धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थ

Chanakya Neeti - Thirteenth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - तेरहवा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Thirteenth Chapter  (चाणक्य नीति -  तेरहवा अध्याय) 1: उत्तम कर्म करते हुए एक पल का जीवन भी श्रेष्ठ है, परन्तु दोनों लोकों (लोक-परलोक) में दुष्कर्म करते हुए कल्प भर के जीवन (हजारों वर्षो का जीना) भी श्रेष्ठ नहीं है। 2: बीते हुए का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य में जो कुछ होने वाला है, उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। आए हुए समय को देखकर ही विद्वान लोग किसी कार्य में लगते है। 3: उत्तम स्वभाव से ही देवता, सज्जन और पिता संतुष्ट होते है। बंधु-बांधव खान-पान से और श्रेष्ठ वार्तालाप से पंडित अर्थात विद्वान प्रसन्न होते है। मनुष्य को अपने मृदुल स्वभाव को बनाए रखना चाहिए। 4: अहो ! आश्चर्य है कि बड़ो के स्वभाव विचित्र होते है, वे लक्ष्मी को तृण के समान समझते है और उसके प्राप्त होने पर, उसके भार से और भी अधिक नम्र हो जाते है। 5: जिसे किसी से लगाव है, वह उतना ही भयभीत होता है। लगाव दुःख का कारण है। दुःखो की जड़ लगाव है। अतः लगाव को छोड़कर सुख से रहना सीखो। 6: भविष्य में आने वाली संभावित विपत्ति और वर्तमान में उपस्थित विपत्ति पर जो तत्काल विचार करके उसका समाधान खोज लेते है,

Chanakya Neeti - Twelfth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - बारहवा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Twelfth Chapter  (चाणक्य नीति - बारहवा अध्याय) 1: घर आनंद से युक्त हो, संतान बुद्धिमान हो, पत्नी मधुर वचन बोलने वाली हो, इच्छापूर्ति के लायक धन हो, पत्नी के प्रति प्रेमभाव हो, आज्ञाकारी सेवक हो, अतिथि का सत्कार और श्री शिव का पूजन प्रतिदिन हो, घर में मिष्ठान व शीतल जल मिला करे और महात्माओ का सत्संग प्रतिदिन मिला करे तो ऐसा गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों से अधिक धन्य है। ऐसे घर का स्वामी अत्यंत सुखी और सौभाग्यशाली होता है। 2: जो व्यक्ति दुःखी ब्राह्मणों पर दयामय होकर अपने मन से दान देता है, वह अनंत होता है। हे राजन ! ब्राह्मणों को जितना दान दिया जाता है, वह उतने से कई गुना अधिक होकर वापस मिलता है। 3: जो पुरुष अपने वर्ग में उदारता, दूसरे के वर्ग पर दया, दुर्जनों के वर्ग में दुष्टता, उत्तम पुरुषों के वर्ग में प्रेम, दुष्टों से सावधानी, पंडित वर्ग में कोमलता, शत्रुओं में वीरता, अपने बुजुर्गो के बीच में सहनशक्ति,स्त्री वर्ग में धूर्तता आदि कलाओं में चतुर है, ऐसे ही लोगो में इस संसार की मर्यादा बंधी हुई है। 4: दोनों हाथ दान देने से रहित, दोनों काल वेदशास्त्र को सुनने के

Chanakya Niti in Hindi - Eleventh Chapter (चाणक्य नीति - ग्यारहवा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Eleventh Chapter  (चाणक्य नीति - ग्यारहवा अध्याय) 1: दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है। 2: जो अपने स्वर्ग को छोड़कर दूसरे के वर्ग का आश्रय ग्रहण करता है, वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है, जैसे राजा अधर्म के द्वारा नष्ट हो जाता है। उसके पाप कर्म उसे नष्ट कर डालते है। 3: हाथी मोटे शरीर वाला है, परन्तु अंकुश से वश में रहता है। क्या अंकुश हाथी के बराबर है ? दीपक के जलने पर अंधकार नष्ट हो जाता है। क्या अंधकार दीपक बराबर है ? वज्र से बड़े-बड़े पर्वत शिखर टूटकर गिर जाते है। क्या वज्र पर्वतों के समान है ? सत्यता यह है कि जिसका तेज चमकता रहता है, वही बलवान है। मोटेपन से बल का अहसास नहीं होता। 4: कलियुग के दस हजार वर्ष बीतने पर श्री विष्णु (पालनकर्ता) इस पृथ्वी को छोड़ देते है, उसके आधा बीतने पर गंगा का जल समाप्त हो ज

Chanakya Niti in Hindi Tenth Chapter (चाणक्य नीति - दसवा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Tenth Chapter  (चाणक्य नीति - दसवा अध्याय) 1: निर्धन व्यक्ति हीन अर्थात छोटा नहीं है, धनवान वही है जो अपने निश्चय पर दृढ़ है, परन्तु विदया रूपी धन से जो हीन है, वह सभी चीजो से हीन है। 2: अच्छी तरह देखकर पैर रखना चाहिए, कपड़े से छानकर पानी पीना चाहिए, शास्त्र से (व्याकरण से) शुद्ध करके वचन बोलना चाहिए और मन में विचार करके कार्य करना चाहिए। 3. विदयार्थी को यदि सुख की इच्छा है और वह परिश्रम करना नहीं चाहता तो उसे विदया प्राप्त करने की इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। यदि वह विदया चाहता है तो उसे सुख-सुविधाओं का त्याग करना होगा क्योंकि सुख चाहने वाला विदया प्राप्त नहीं कर सकता। दूसरी ओर विदया प्राप्त करने वालो को आराम नहीं मिल सकता। 4: कवि लोग क्या नहीं देखते ? स्त्रियां क्या नहीं कर सकती ? मदिरा पीने वाले क्या-क्या नहीं बकते ? कौवे क्या-क्या नहीं खाते ? 5: भाग्य की शक्ति अत्यंत प्रबल है। वह पल में निर्धन को राजा और राजा को निर्धन बना देती है। वह धनी को निर्धन और निर्धन को धनी बना देती है। 6: लोभियों का शत्रु भिखारी है, मूर्खो का शत्रु ज्ञानी है, व्यभिचारिणी स्त

Chanakya Niti in Hindi Ninth Chapter (चाणक्य नीति - नववा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Ninth Chapter  (चाणक्य नीति - नववा अध्याय) 1: यदि मुक्ति चाहते हो तो समस्त विषय-वासनाओं को विष के समान छोड़ दो और क्षमाशीलता, नम्रता, दया, पवित्रता और सत्यता को अमृत की भांति पियो अर्थात अपनाओ। 2: जो नीच व्यक्ति परस्पर की गई गुप्त बातों को दुसरो से कह देते है, वे ही दीमक के घर में रहने वाले सांप की भांति नष्ट हो जाते है। 3: ब्रह्मा को शायद कोई बताने वाला नहीं मिला जो की उन्होंने सोने में सुगंध, ईख में फल, चंदन में फूल, विद्वान को धनी और राजा को चिरंजीवी नहीं बनाया। 4: सभी औषधियों में अमृत प्रधान है, सभी सुखो में भोजन प्रधान है, सभी इन्द्रियों में नेत्र प्रधान है सारे शरीर में सिर श्रेष्ठ है। 5: न तो आकाश में कोई दूत गया, न इस संबंध में किसी से बात हुई, न पहले किसी ने इसे बनाया और न कोई प्रकरण ही आया, तब भी आकाश में भृमण करने वाले चंद्र और सूर्य के ग्रहण के बारे में  जो ब्राह्मण पहले से ही जान लेता है, वह विद्वान क्यों नहीं हैं? अर्थात वास्तव में वह विद्वान है, जिसकी गणना से ग्रहों की चल का सही-सही-पता लगाया जाता रहा है। 6: विध्यार्थी, नौकर, पथिक, भूख से

Chanakya Niti In Hindi - Eighth Chapter (चाणक्य नीति - आंठवा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Eighth Chapter  (चाणक्य नीति - आंठवा अध्याय) 1: निकृष्ट लोग धन की कामना करते है, मध्यम लोग धन और यश दोनों चाहते है और उत्तम लोग केवल यश ही चाहते है क्योंकि मान-सम्मान सभी प्रकार के धनो में श्रेष्ठ है। 2: ईख, जल, दूध, मूल (कंद), पान, फल और दवा आदि का सेवन करके भी, स्नान-दान आदि क्रियाए की जा सकती है। 3: जैसे दीपक का प्रकाश अंधकार को खा जाता है और कालिख को पैदा करता है, उसी तरह मनुष्य सदैव जैसा अन्न खाता है, वैसी ही उसकी संतान होती है। 4: हे बुद्धिमान पुरुष ! धन गुणवानो को दे, अन्य को नहीं। देखो, समुद्र का जल मेघो के मुँह में जाकर सदैव मीठा हो जाता है और पृथ्वी के चर-अचर जीवों को जीवनदान देकर कई करोड़ गुना होकर फिर से समुद्र में चला जाता है। 5: तत्वदर्शी मुनियों ने कहा है कि हजारों चांडालों के बराबर एक यवन (म्लेच्छ) होता है। यवन से बढ़कर कोई नीच नहीं है। 6: (शरीर में) तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, स्त्री संभोग करने पर, बाल कटवाने पर, मनुष्य तब तक चांडाल, अर्थात अशुद्ध ही रहता है, जब तक वह स्नान नहीं कर लेता। 7: अपच होने पर पानी दवा है, पचने पर बल दे

Chanakya Niti In Hindi - Seventh Chapter (चाणक्य नीति - सातवां अध्याय)

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Chanakya Neeti - Seventh Chapter  (चाणक्य नीति - सातवां अध्याय) 1: बुद्धिमान पुरुष धन के नाश को, मन के संताप को, गृहिणी के दोषो को, किसी धूर्त ठग के द्वारा ठगे जाने को और अपमान को किसी से नहीं कहते। 2: धन और अन्न के लेनदेन में, विद्या ग्रहण करते समय, भोजन और अन्य व्यवहारों में संकोच न रखने वाला व्यक्ति सुखी रहता है। 3: शांत चित्त वाले संतोषी व्यक्ति को संतोष रुपी अमृत से जो सुख प्राप्त होता है, वह इधर-उधर भटकने वाले धन लोभियों को नहीं होता। 4: अपनी स्त्री, भोजन और धन, इन तीनो में संतोष रखना चाहिए और विद्या अध्ययन, तप और दान करने-कराने में कभी संतोष नहीं करना चाहिए। 5: दो ब्राह्मणों के बीच से, अग्नि और ब्राह्मण के बीच से, पति और पत्नी के बीच से, स्वामी और सेवक के बीच से तथा हल और बैल के बीच से नहीं गुजरना चाहिए। 6: पैर से अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गौ, कन्या, वृद्ध और बालक को कभी नहीं छूना चाहिए। 7: बैलगाड़ी से पांच हाथ, घोड़े से दस हाथ, हठी से हजार हाथ दूर बचकर रहना चाहिए और दुष्ट पुरुष (दुष्ट राजा) का देश ही छोड़ देना चाहिए। 8: हाथी को अंकुश से, घोड़े को चाबुक से, सींग वाल

Chanakya Neeti In Hindi - Sixth Chapter (चाणक्य नीति - छठवां अध्याय)

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Chanakya Neeti - Sixth Chapter  (चाणक्य नीति - छठवां अध्याय) 1: मनुष्य शास्त्रों को पढ़कर धर्म को जानता है, मूर्खता को त्यागकर ज्ञान प्राप्त करता है तथा शास्त्रों को सुनकर मोक्ष प्राप्त करता है। 2: पक्षियों में कौवा, पशुओं में कुत्ता, ऋषि-मुनियों में क्रोध करने वाला और मनुष्यो में चुगली करने वाला चांडाल अर्थात नीच होता है। 3: कांसे का पात्र राख द्वारा मांजने से शुद्ध होता है, तांबे का पात्र खटाई के रगड़ने से शुद्ध होता है। स्त्री रजस्वला होने से पवित्र होती है और नदी तीव्र गति से बहने से निर्मल हो जाती है। 4: प्रजा की रक्षा के लिए भृमण करने वाला राजा सम्मानित होता है, भृमण करने वाला योगी और ब्राह्मण सम्मानित होता है, किन्तु इधर-उधर घूमने वाली स्त्री भृष्ट होकर नष्ट हो जाती है। 5: जिसके पास धन है उसके अनेक मित्र होते है, उसी के अनेक बंधु-बांधव होते है, वही पुरुष कहलाता है और वही पंडित कहलाता है। 6: जैसी होनहार होती है, वैसी ही बुद्धि हो जाती है, उध्योग-धंधा भी वैसा ही हो जाता है और सहायक भी वैसे ही मिल जाते है। 7: काल (समय, मृत्यु) ही पंच भूतो (पृथ्वी,जल, वायु, अग्नि, आक

Chanakya Neeti In Hindi - Fifth Chapter (चाणक्य नीति - पांचवा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Fourth Chapter  (चाणक्य नीति - पांचवा अध्याय) 1: स्त्रियों का गुरु पति है। अतिथि सबका गुरु है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का गुरु अग्नि है तथा चारों वर्णो का गुरु ब्राह्मण है। 2: जिस प्रकार घिसने, काटने, आग में तापने-पीटने, इन चार उपायो से सोने की परख की जाती है, वैसे ही त्याग, शील, गुण और कर्म, इन चारों से मनुष्य की पहचान होती है। 3: भय से तभी तक डरना चाहिए, जब तक भय आए नहीं। आए हुए भय को देखकर निशंक होकर प्रहार करना चाहिए, अर्थात उस भय की परवाह नहीं करनी चाहिए। 4: एक ही माता के पेट से और एक ही नक्षत्र में जन्म लेने वाली संतान समान गुण और शील वाली नहीं होती, जैसे बेर के कांटे। 5: जिसका जिस वस्तु से लगाव नहीं है, उस वस्तु का वह अधिकारी नहीं है। यदि कोई व्यक्ति सौंदर्य प्रेमी नहीं होगा तो श्रृंगार शोभा के प्रति उसकी आसक्ति नहीं होगी। मूर्ख व्यक्ति प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता और स्पष्ट वक्ता कभी धोखेबाज, धूर्त या मक्कार नहीं होता। 6: मूर्खो के पंडित, दरिद्रो के धनी, विधवाओं की सुहागिनें और वेश्याओं की कुल-धर्म रखने वाली पतिव्रता स्त्रियां शत्रु होती

Chanakya Neeti In Hindi - Fourth Chapter (चाणक्य नीति - चौथा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Fourth Chapter  (चाणक्य नीति - चौथा अध्याय) 1: यह निश्चित है की शरीरधारी जीव के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विध्या, मृत्यु इन पांचो की सृष्टि साथ-ही-साथ हो जाती है। 2: साधु महात्माओ के संसर्ग से पुत्र, मित्र, बंधु और जो अनुराग करते है, वे संसार-चक्र से छूट जाते है और उनके कुल-धर्म से उनका कुल उज्जवल हो जाता है। 3: जिस प्रकार मछली देख-रेख से, कछुवी चिड़िया स्पर्श से (चोंच द्वारा) सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगोँ के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है। 4: यह नश्वर शरीर जब तक निरोग व स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती, तब तक मनुष्य को अपने सभी पुण्य-कर्म कर लेने चाहिए क्योँकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा। 5: विध्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विध्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विध्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानो ने विध्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विध्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है। 6: सैकड़ो अज्ञानी पुत्रों से एक ही गु

Chanakya Neeti in Hindi - Third Chapter (चाणक्य नीति - तीसरा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Third Chapter  (चाणक्य नीति - तीसरा अध्याय) 1: दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ? 2: मनुष्य का आचरण-व्यवहार उसके खानदान को बताता है, भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है। 3: कन्या का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए। पुत्र को विध्या के साथ जोड़ना चाहिए। दुश्मन को विपत्ति में डालना चाहिए और मित्र को अच्छे कार्यो में लगाना चाहिए। 4: दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है। 5: इसीलिए राजा खानदानी लोगो को ही अपने पास एकत्र करता है क्योंकि कुलीन अर्थात अच्छे खानदान वाले लोग प्रारम्भ में, मध्य में और अंत में, राजा को किसी दशा ने भी नहीं त्यागते। 6: प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते। 7: मुर

Chanakya Neeti in Hindi - Second Chapter (चाणक्य नीति - दूसरा अध्याय)

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Chanakya Neeti - Second Chapter  (चाणक्य नीति - दूसरा अध्याय) 1: झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है। 2: भोजन करने तथा उसे अच्छी तरह से पचाने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त होता हो, प्रेम करने के लिए अर्थात रति-सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो, ये सभी सुख किसी तपस्या के फल के समान है, अर्थात कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होते है। 3: जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो, स्त्री उसके अनुसार चलने वाली हो, अर्थात पतिव्रता हो, जो अपने पास धन से संतुष्ट रहता हो, उसका स्वर्ग यहीं पर है। 4: पुत्र वे है जो पिता भक्त है। पिता वही है जो बच्चों का पालन-पोषण करता है। मित्र वही है जिसमे पूर्ण विश्वास हो और स्त्री वही है जिससे परिवार में सुख-शांति व्याप्त हो। 5: जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यो में रोड़ा अटकाता हो, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना

Chanakya Neeti in Hindi - First Chapter (चाणक्य नीति - प्रथम अध्याय)

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चाणक्य नीति - प्रथम अध्याय (Chanakya Neeti - First Chapter) : 1.  सर्वशक्तिमान तीनो लोको के स्वामी श्री विष्णु भगवान को शीश नवाकर मै अनेक शास्त्रों से निकाले गए राजनीति सार के तत्व को जन कल्याण हेतु समाज के सम्मुख रखता हूं। 2.  इस राजनीति शास्त्र का विधिपूर्वक अध्ययन करके यह जाना जा सकता है कि कौनसा कार्य करना चाहिए और कौनसा कार्य नहीं करना चाहिए। यह जानकर वह एक प्रकार से धर्मोपदेश प्राप्त करता है कि किस कार्य के करने से अच्छा परिणाम निकलेगा और किससे बुरा। उसे अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाता है। 3. लोगो की हित कामना से मै यहां उस शास्त्र को कहूँगा, जिसके जान लेने से मनुष्य सब कुछ जान लेने वाला सा हो जाता है। 4. मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन पोषण से और दुखियों के साथ संबंध रखने से, बुद्धिमान व्यक्ति भी दुःखी होता है। तात्पर्य यह कि मूर्ख शिष्य को कभी भी उपदेश नहीं देना चाहिए, पतित आचरण करने वाली स्त्री की संगति करना तथा दुःखी मनुष्यो के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुःख ही उठाना पड़ता है। 5. दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब

आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार (Thoughts and Quotes of Chanakya in Hindi)

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आचार्य चाणक्य आचार्य चाणक्य का जन्म आज से लगभग 2400 साल पूर्व हुआ था।  वह नालंदा विशवविधालय के महान आचार्य थे। उन्होंने हमें 'चाणक्य नीति' जैसा ग्रन्थ दिया जो आज भी उतना ही प्रामाणिक है जितना उस काल में था।  चाणक्य नीति एक 17 अध्यायों का ग्रन्थ है। आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के अलावा सैकड़ों ऐसे कथन और कह थे जिन्हें की हर इंसान को पढ़ना, समझना और अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमने उनके ऐसे ही कथनों और विचारों का संग्रह यहाँ आप सब के लिए किया है। आशा है आप सभी पाठकों को आचार्य चाणक्य के कोट्स का यह संग्रह जरूर पसंद आएगा। Quote 1: ऋण, शत्रु  और रोग को समाप्त कर देना चाहिए। Quote 2: वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है। Quote 3: शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें। Quote 4: सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता। Quote 5: एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते है। Quote 6: आपातकाल में स्नेह करने वाला ही मित्र होता है। Quote 7: मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है।   Quote 8: जो धैर्यवान नहीं