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जुलाई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्यूँ था भारत सोने की चिड़िया (Why India was Golden Bird)

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"सारी दुनिया में जो कुल उत्पादन होता है उसका 43% उत्पादन अकेले भारत में होता है और दुनिया के बाकी 200 देशों में मिलाकर 57% उत्पादन होता है।" इसके बाद अँग्रेजी संसद में एक और आंकड़ा प्रस्तुत किया गया की: "सारी दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा लगभग 33% है।" इसी तरह से एक और आंकड़ा भारत के बारे में अँग्रेजी संसद में दिया गया की: "सारी दुनिया की जो कुल आमदनी है, उस आमदनी का लगभग 27% हिस्सा अकेले भारत का है।" ये आंकड़ा अंग्रेजों द्वारा उनकी संसद में 1835 में और 1840 में भी दिया गया। आज से लगभग 100-150 साल से शुरू करके पिछले हज़ार साल का इतिहास के कुछ तथ्य। भारत के इतिहास/ अतीत पर दुनिया भर के 200 से ज्यादा विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत शोध किया है। इनमें से कुछ विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूँगा। ये सारे विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञ भारत से बाहर के हैं,कुछ अंग्रेज़ हैं,कुछ स्कॉटिश हैं,कुछ अमेरिकन हैं,कुछ फ्रेंच हैं,कुछ जर्मन हैं। ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ

घटोत्कच पुत्र बर्बरीक द्वारा छेदा गया पीपल का पेड़ (Barbareek Son of Ghatotkach)

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जिन्होंने थोड़ी भी महाभारत पढ़ी होगी उन्हें वीर बर्बरीक वाला प्रसंग जरूर याद होगा....! उस प्रसंग में हुआ कुछ यूँ था कि..... महाभारत का युद्घ आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्घ में पाण्डवों के साथ थे....... जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है, लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी। ऐसे समय में भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक ने..... अपनी माता को वचन दिया कि... युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा ! इसके लिए, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे। परन्तु, भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे ...... ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि..... वह तीन वाण से भला क्या युद्घ लड़ेगा...????? कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि ......उसके पास अजेय बाण है और, वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है ..तथा, सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा। इस पर श्री कृष

विष्णु के दस अवतारों का रहस्य तथा विज्ञान (Science and Secret behind ten Incarnation of Vishnu)

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हिन्दू धर्म ग्रंथों में लिखे एक-एक लाइन का वैज्ञानिक आधार है.... बशर्ते उसे समझने की अक्ल होनी चाहिए.....! पुराणोँ को ध्यान से पढ़ने के पश्चात मालूम चलता है कि इसमेँ अधिकांश बातें वैज्ञानिक और प्राकृतिक है .. जिसे कहीं मानवीकरण के द्वारा तो कहीं रूप-अलंकार के द्वारा बताया गया है। उदाहरण के तौर पर... भगवान विष्णु के सभी अवतारों को हम आधुनिक क्रमिक विकास से संबंधित कर सकते हैं ...! विष्णु अवतार के ये विभिन्न अवतार हमें धरती पर प्रभुत्व वाले जीवोँ की जानकारी देते हैं ..... जो धरती पर विभिन्न कालों में राज किया करते थे । 1. प्रथम अवतार ......"मत्स्य"........एक जीव है जो केवल पानी में रहते हैं.. और, वैष्णव के अनुसार धरती पर जीव की उत्पत्ति समुद्र के झाग या मिनरल से हुई थी । 2. दूसरा अवतार....... "कुर्मा"...... एक जीव है ... जो पानी और भूमि ( उभयचर ) दोनों जगहों में रह सकता है... तथा, इसी प्रकार के जीवोँ से धरती पर अन्य जीवोँ की भी उत्पत्ति मानी जाती है । 3. तीसरा अवतार... "वाराह"....एक जीव है.. जो केवल जमीन पर रहते हैं ( स्विमिंग करने की क्षमता क

84 लाख योनियों का रहस्य (Secret of 8.4 million species of life)

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क्या आप जानते हैं कि..... हमारे हिन्दू सनातन धर्मग्रंथों में उल्लेखित 84 लाख योनि ... का रहस्य क्या है क्योंकि.... इस उल्लेखित 84 योनि को लेकर हम हिन्दुओं में ही काफी भ्रम की स्थिति बनी रहती है और हर लोग सुनी-सुनाई ढंग से इसकी व्याख्या करने की कोशिश में लगा रहता है....! दरअसल... हमारे धर्म ग्रंथों में 84 लाख योनि ... विशुद्ध रूप से जीव विज्ञान एवं उसके क्रमिक विकास के सम्बन्ध में उल्लेखित है....! इसका तात्पर्य यह हुआ है कि.... हमारे सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि.... सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है... और, इसी की अभिव्यक्ति हमारे अनेक ग्रंथों में हुई है। श्रीमद्भागवत पुराण में इस बात के इस प्रकार वर्णन आता है- सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया वृक्षान्‌ सरीसृपपशून्‌ खगदंशमत्स्यान्‌। तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय व्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण) अर्थात..... विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई ....और, इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ..