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अक्तूबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या आप वेद पुराण के बारे में ये भी जानते है (Do you know about Vedas)

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1. वेद - वेद प्राचीन भारत में रचित विशाल ग्रन्थ हैं. इनकी भाषा संस्कृत है जिसे 'वैदिक संस्कृत' कहा जाता है. वेद हिन्दुओ के धर्मग्रन्थ भी हैं. वेदों को 'अपौरुषेय' (जिसे कोई व्यक्ति न कर सकता हो) माना जाता है तथा ब्रह्मा को इनका रचयिता माना जाता है. इन्हें 'श्रुति' भी कहते हैं जिसका अर्थ है 'सुना हुआ'  द्वापरयुग की समाप्ति के समय श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी ने यज्ञानुष्ठान के उपयोग को दृष्टिगत उस एक वेद के चार विभाग कर दिये और इन चारों विभागों की शिक्षा चार शिष्यों को दी .  ये ही चार विभाग ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के नाम से प्रसिद्ध है . पैल, वैशम्पायन, जैमिनि और सुमन्तु नामक -चार शिष्यों को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की शिक्षा दी .   1. ऋग्वेद: 2. यजुर्वेद: 3.सामवेद: 4.अथर्ववेद 5.उपनिषद: वेद का पद्य भाग - ऋग्वेद, अथर्ववेद वेद का गद्य भाग - यजुर्वेद वेद का गायन भाग - सामवेद 2. वेदांग -  वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं .  वेदांग शब्द से अभिप्राय है- 'जिसके द्वारा किसी वस्तु के

क्या आपको याद है विवाह के ये सात वचन (seven promises of hindu marriage)

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हिन्दू धर्म में विवाह के समय वर-वधू द्वारा सात वचन लिए जाते हैं. इसके बाद ही विवाह संस्कार पूर्ण होता है. विवाह के बाद कन्या वर से पहला वचन लेती है कि- पहला वचन इस प्रकार है -                                       तीर्थव्रतोद्यापनयज्ञ दानं मया सह त्वं यदि कान्तकुर्या:।                                      वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद वाक्यं प्रथमं कुमारी।। अर्थ - इस श्लोक के अनुसार कन्या कहती है कि स्वामि तीर्थ, व्रत, उद्यापन, यज्ञ, दान आदि सभी शुभ कर्म तुम मेरे साथ ही करोगे तभी मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हैं अर्थात् तुम्हारी पत्नी बन सकती हूं। वाम अंग पत्नी का स्थान होता है. दूसरा वचन इस प्रकार है-                                                 हव्यप्रदानैरमरान् पितृश्चं कव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथा:।                                             वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं द्वितीयकम्. अर्थ - इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से कहती है कि यदि तुम हव्य देकर देवताओं को और कव्य देकर पितरों की पूजा करोगे तब ही मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं यानी पत्

चरणामृत का महत्व (Importance of Charnamrit)

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अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है. क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की. कि चरणामृतका क्या महत्व है. शास्त्रों में कहा गया है अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।। "अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है। जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता, जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है. जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे मेंऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया. वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है

ऐसे करे करवा चौथ का व्रत (Method of Karwa Chauth)

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यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती(सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे पूर्व सरघी खाती है.इसके   के बाद व्रत शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है।  करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें। व्रत की विधि - व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-                         'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।' पूरे

सिर पर शिखा का क्या महत्व (Importance of Shikha on head)

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हम देखते है कि बहुत से लोग सिर पर शिखा(चोटी) रखते है. पर सिर पर शिखा रखने का क्या तात्पर्य है,हम ये समझ नहीं पाते. सिर पर शिखा ब्राह्मणों,संतो, वैष्णवों की पहचान मानी जाती है। लेकिन यह केवल कोई पहचान मात्र नहीं है। १. - जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं। २. - आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरी

शिवलिंग (Shivlinga)

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शिवलिंग : शिवलिंग के बारे में लोगों को इतनी ज्यादा भ्रांतियां हैं और वो भी उसके नाम को लेकर !! लोग आज कल जो उसका मतलब निकालते हैं वो यहाँ मैं नहीं कह सकता क्योंकि उस भ्रान्ति का प्रचार हम नहीं करना चाहते। सबसे पहली बात संस्कृत में "लिंग" का अर्थ होता है प्रतीक। Penis या जननेंद्रि के लिए संस्कृत में एक दूसरा शब्द है - "शिश्न". शिवलिंग भगवान् के निर्गुण-निराकार रूप का प्रतीक है। भगवान् का वह रूप जिसका कोई आकार नहीं जिसमे कोई गुण ( सात्विक,राजसिक और तामसिक ) नहीं है , जो पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतीक है और जो शून्य-अवस्था का प्रतीक है। ध्यान में योगी जिस शांत शून्य भाव को प्राप्त करते हैं, जो इश्वर के शांत और परम-आनंद स्वरुप का प्रतीक है उसे ही शिवलिंग कहते हैं। शिवलिंग में दूध अथवा जल की धारा चढ़ाने से अपने आप मन शांत हो जाता है ये हम सबका अनुभव है, और इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। जो सच्चे ब्राह्मण हैं वो इस बात को जानते हैं कि शिवलिंग पर जल या दूध चढाते समय "ॐ नमः शिवाय " बोलने की अपेक्षा केवल "ॐ ॐ " बोलना उत्तम है. शिव अभिषेक करते समय

भारतीय संस्कृति का प्रतीक ‘नमस्कार’ एवं इसके आध्यात्मिक लाभ (Benefits of namaskar)

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१.नमस्कार के लाभ २. मंदिर में प्रवेश करते समय सीढियों को नमस्कार कैसे करें ? ३. देवता को नमन करने की योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र क्या है ? ४. वयोवृद्धों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? ५. किसी से मिलने पर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर नमस्कार करना इष्ट क्यों है ? ६. मृत व्यक्ति को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? ७. विवाहोपरांत पति व पत्नीको एक साथ नमस्कार क्यों करना चाहिए ? ८. किसी से भेंट होने पर नमस्कार कैसे करें ? ९. नमस्कार में क्या करें व क्या न करें ? ईश्वर के दर्शन करते समय अथवा ज्येष्ठ या सम्माननीय व्यक्तिसे मिलनेपर हमारे हाथ अनायास ही जुड जाते हैं । हिंदू मनपर अंकित एक सात्त्विक संस्कार है `नमस्कार’ । भक्तिभाव, प्रेम, आदर, लीनता जैसे दैवीगुणोंको व्यक्त करनेवाली व ईश्वरीय शक्ति प्रदान करनेवाली यह एक सहज धार्मिक कृति है । नमस्कारकी योग्य पद्धतियां क्या है, नमस्कार करते समय क्या नहीं करना चाहिए, इसका शास्त्रोक्त विवरण यहां दे रहे हैं । १. नमस्कार के लाभ – मूल धातु `नम:’ से `नमस्कार’ शब्द बना है । `नम:’ का अर्थ है नमस्कार करना, वंदन करना । `नमस्कारका मुख्य उ

What Is the Koran?

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IN 1972, during the restoration of the Great Mosque of Sana'a, in Yemen, laborers working in a loft between the structure's inner and outer roofs stumbled across a remarkable gravesite, although they did not realize it at the time. Their ignorance was excusable: mosques do not normally house graves, and this site contained no tombstones, no human remains, no funereal jewelry. It contained nothing more, in fact, than an unappealing mash of old parchment and paper documents—damaged books and individual pages of Arabic text, fused together by centuries of rain and dampness, gnawed into over the years by rats and insects. Intent on completing the task at hand, the laborers gathered up the manuscripts, pressed them into some twenty potato sacks, and set them aside on the staircase of one of the mosque's minarets, where they were locked away—and where they would probably have been forgotten once again, were it not for Qadhi Isma'il al-Akwa', then the president of the Ye

Vedic Past of Pre-Islamic Arabia part-8 (अरब का वैदिक इतिहास भाग ८)

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There was a price one had to pay if one wanted to live in the Arabia of the Prophet of Islam . That price was the surrender of one's ancestral heritage, and all the values that one held sacred, of forcible subjugation, of curtailment of the individual right to choose one's god and method of worship. To live in Muhammad's Arabia, one had to give up the most cherished possession of human existence; that of the individual right to freedom of religion. Arabia's Vedic culture had been slashed and ravaged to a state of tatters. In place of the tradition of spiritual tolerance and growth that defined Sanatan Dharma, Arvasthan was now the political center of a fanatical creed that ruled by the sword and held dear the values of extortion, greed and murder. Figure1. The huge Kalash atop Ad-Deir, an ancient Vedic shrine in Jordan Source: The Art of Jordan As we have seen, the Prophet was completely unsuccessful in his Siege of the city of Taif . He therefore ended the campa

Vedic Past of Pre-Islamic Arabia part-7 (अरब का वैदिक इतिहास भाग ७)

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The innumerable strokes of Muhammad's bloody sword, still could not sever Arabia's ties to its ancient Vedic heritage. When the tribe of Hawazin heard that the Muslims had taken Mecca, they made preparations to fight. They were led by Malik Ibn Auf, chief of the clan of Bani Nasr and accompanied by the Beni Saad and Thaqeef tribes. The Prophet of Islam in his usual insidious way had planted spies among the unsuspecting tribespeople to discover all their plans for attack. He was determined to teach these insolent rebels a lesson. Armed in full armour and protected by an impenetrable cohort of defenders, he descended upon the Hawazin with an army of 12,000 fresh converts, who were drooling at the prospect of fresh loot & women. The brave Hawazin numbering 4,000 hid out in the ravines around the valley of Hunain and lay in wait. As the Muslims poured down the valley in the twilight of dawn, men suddenly sprang out from the hills on both sides & took them completely by su