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श्री कृष्ण की सोलह कलाओ का रहस्य (Secret of Sixteen arts of Krishna)

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श्री कृष्ण की सोलह कलाओ का रहस्य (Secret of Sixteen arts of Krishna) अवतारी शक्तियों की सामर्थ्य को समझने के लिए कलाओं को आधार मानते हैं। कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला के अवतार माने गए हैं। भागवत पुराण के अनुसार सोलह कलाओं में अवतार की पूरी सामर्थ्य खिल उठती है। 1.श्री-धन संपदा प्रथम कला के रूप में धन संपदा को स्थान दिया गया है। जिस व्यक्ति के पास अपार धन हो और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर से कोई भी खाली हाथ नहीं जाए वह प्रथम कला से संपन्न माना जाता है। यह कला भगवान श्री कृष्ण में मौजूद है। 2. भू-अचल संपत्ति जिस व्यक्ति के पास पृथ्वी का राज भोगने की क्षमता है। पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार है और उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह अचल संपत्ति का मालिक होता है। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी योग्यता से द्वारिका पुरी को बसाया। इसलिए यह कला भी इनमें मौजूद है। 3. कीर्ति- यश प्रसिद्धि जिसके मान-सम्मान और यश की कीर्ति से चारों दिशाओं में गूंजती हो। लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्घा और विश्वास रखते हों वह ती

रक्षाबन्धन का कारण तथा विधि (Reason Behind RakshaBandhan)

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रक्षाबन्धन का कारण और मनाये जाने का समय जब भगवान् वामन अवतार धारण करके महाराज बलि से तीन पग भूमि की याचना करके उनका सर्वस्व हर लिए और महाराज बलि को सुतल लोक भेज दिया |और कहा कि यह लोक सुख सम्पदा से भरपूर होने के कारण स्वर्ग वासियों से भी अभिलषित है- सुतलं स्वर्गिभिः प्रार्थ्यं-भा.पु.-८/२२/३३, मैं बंधू बांधवों के सहित तुम्हारी रक्षा करूँगा और तुम मुझे वहां सर्वदा अपने पास ही देखोगे— रक्षिष्ये सर्वतोsहं त्वां सानुगं सपरिच्छदम् | सदा संनिहितं वीर तत्र मां द्रक्ष्यते भवान् ||-भ.-८/२२/३५, भगवान महाराज बलि के दुर्गपाल बन गए | भक्त प्रहलाद स्पष्ट कह रहे हैं कि हे सम्पूर्ण लोकों से अभिवन्द्य ब्रह्मा शिव आदि से वन्दनीय चरण वाले प्रभो ! आप तो हम असुरों के दुर्गपाल*द्वारपाल बन गए | आपकी यह कृपा न तो ब्रह्मा जी प्राप्त कर सके न लक्ष्मी जी या शंकर जी ही | फिर अन्य लोगों की बात ही क्या ?- नेमं विरिञ्चो लभते प्रसादं न श्रीर्न शर्वः किमुता परे ते | यन्नोsसुराणामसि दुर्गपालो विश्वाभिवन्द्यैरपिवन्दिताङ्घ्रिः ||  -भा. पु.—८/२३/६, भगवान कह रहे हैं कि हे महाराज बलि आप अपने

Unsolved Mysteries of the World (विश्व के अनसुलझे रहस्य )

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Unsolved Mysteries of the World (विश्व के अनसुलझे रहस्य ) 1. The mighty Incan Empire of South America The mighty Incan Empire of South America flourished between 1200 and 1535 AD. They developed drainage systems and canals to expand their crops, and built stone cities atop steep mountains  such as Machu Picchu (above)  without ever inventing the wheel. Despite their vast achievements, the Incan Empire with its 40,000 manned army was no match for 180 Spanish conquistadors armed with advanced weapons and smallpox. 2. Ancient Pyramids in Giza, Egypt   Khafre (l.) and Khufu (r.) are two of the three ancient Pyramids in Giza, Egypt. Khufu is the biggest, consisting of more than 2 million stones with some weighing 9 tons. The Pyramids, built as elaborate tombs for divine kings, date back to 2,550 BC. Modern Egyptologists believe that the Pyramids are made from stones dragged from quarries and, despite ancient Greek testimony, were built predominantly by skilled craftsmen r

नागमण‌ि तथा अन्य मणियों का रहस्य (Secret of Strange Pearls)

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नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास इकट्ठे हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने के और भी कारण हैं। नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। आम जनता में यह बात प्रचलित है कि कई लोगों ने ऐसे नाग देखे हैं जिसके सिर पर मणि थी। हालांकि पुराणों में मणिधर नाग के कई किस्से हैं। भगवान कृष्ण का भी इसी तरह के एक नाग से सामना हुआ था। ज्योत‌िषशास्‍त्र के एक प्रमुख ग्रंथ वृहत्ससंह‌िता में जो उल्लेख म‌िलता है उसके अनुसार संसार में मण‌िधारी नाग मौजूद हैं। चुंक‌ि ऐसे नागों का म‌िलना दुर्लभ होता है इसल‌िए कहा जाता है मण‌िधारी नाग नहीं होते हैं। अब सच जो भी है लेक‌िन वृहत्ससंह‌िता में नागमण‌ि के बारे में कई रोचक बातें बताई गई हैं। जो इस बात को सोचने पर व‌िवश करता है क‌ि क्या वास्तव में नागमण‌ि होता है। वृहत्संह‌िता में नागमण‌ि के बारे में कई बातें कही गई हैं। सर्पमण‌ि ज‌िसे नागमण‌ि

देवताओ के वाहन का रहस्य (Chariots of Gods )

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 पुरानी मान्यता है कि देवी-देवता में जिस तरह के गुण होते हैं, उन्हें उसी गुण वाला कोई पशु या पक्षी वाहन के रूप में दिया गया है। यही कारण है कि उनके वाहन भी अलग-अलग हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में हर एक देवी या देवता के विशेष वाहन का ब्यौरा मिलता है, जैसे- देवी भागवत के अनुसार लक्ष्मी का वाहन उल्लू, दुर्गा का सिंह और शिवपुराण के अनुसार गणेश का चूहा, शिव का वृषराज नंदीश्वर हैं। अध्यात्मिक दृष्टिकोण से इन वाहनों के रूप में बहुत ही अद्भुत रहस्य और सूक्ष्म प्रेरणाएं छिपी हैं, जिन्हें हर एक को जानना चाहिए। गणेशजी का वाहन स्वतंत्र स्थिति में अस्थिर होने का प्रतीक है। मन रूपी चूहे की एकाग्र हो जाने पर संसार में सभी सुखों की प्राप्ति होती है और इसी से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। आत्मज्ञान से चंचलता पर लगाम लगती है। कहा भी गया है कि इंसान ही इंसान के बंधन और मोक्ष का कारण है। 1. शिवजी का वाहन वृषराज नंदीश्वर धर्म का प्रतीक है। नंदी का सफेद रंग सत्वगुण को बताता है और नंदी के चार पैर धर्म के चार स्तंभ-दया, दान, तप व शौच हैं। इनका पालन करके हम शिवलोक पा सकते हैं। 2. विष्णु का वा

भारतीय पञ्चाङ्ग (Ancient Indian Calendar System)

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भारतीय पञ्चाङ्ग भरतीय इतिहास तथा सहित्य के ज्ञान के लिये पञ्चाङ्ग की परम्परा जानना आवश्यक है। अतः गत ३२ हजार वर्षों की पञ्चाङ्ग परम्परा दी जाती है। काल के ४ प्रकार, सृष्टि के ९ सर्गों के अनुसर ९ काल-मान, ७ युग तथा उसके अनुसार गत ६२ हजार वर्षों का युग-चक्र है (१) स्वायम्भुव मनु काल-स्वायम्भुव मनु काल में सम्भवतः आज के ज्योतिषीय युग नहीं थे। यह व्यवस्था वैवस्वत मनु के काल से आरम्भ हुयी अतः उनसे सत्ययुग का आरम्भ हुआ। यदि ब्रह्मा से आरम्भ होता तो ब्रह्मा आद्य त्रेता में नहीं, सत्य युग के आरम्भ में होते। अथवा सत्ययुग पहले आरम्भ हो गया, पर सभ्यता का विकास काल त्रेता कहा गया। ब्रह्मा की युग व्यवस्था में युग पाद समान काल के थे जैसा ऐतरेय ब्राह्मण के ४ वर्षीय गोपद युग में या स्वायम्भुव परम्परा के आर्यभट का युग है। वर्ष का आरम्भ अभिजित् नक्षत्र से होता था, जिसे बाद में कार्त्तिकेय ने धनिष्ठा नक्षत्र से आरम्भ किया। कार्त्तिकेय काल में (१५८०० ई.पू.) यह वर्षा काल था। स्वायम्भुव मनु काल में यह उत्तरायण का आरम्भ था। किन्तु दोनों व्यवस्थाओं में माघ मास से ही वर्ष का आरम्भ होता था। मासों का नाम प

History of Rajpoots(राजपूतों की वंशावली व इतिहास )

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: राजपूतों की वंशावली :  "दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये  , कुल छत्तिस वंश प्रमाण भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण." अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय,   दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग- अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है। सूर्य वंश की दस शाखायें:- १. कछवाह २. राठौड  ३. बडगूजर ४. सिकरवार ५. सिसोदिया  ६.गहलोत  ७.गौर ८.गहलबार  ९.रेकबार  १०.जुनने चन्द्र वंश की दस शाखायें:- १.जादौन २.भाटी ३.तोमर ४.चन्देल ५.छोंकर ६.होंड ७.पुण्डीर ८.कटैरिया ९.स्वांगवंश  १०.वैस अग्निवंश की चार शाखायें:- १.चौहान २.सोलंकी ३.परिहार  ४.पमार. ऋषिवंश की बारह शाखायें:- १.सेंगर २.दीक्षित ३.दायमा ४.गौतम ५.अनवार (राजा जनक के वंशज) ६.विसेन ७.करछुल ८.हय ९.अबकू तबकू  १०.कठो