प्रभावशाली अस्त्र विद्या (Advanced Weaponology)
चतुर्दिश अस्त्र संरचना:
विभिन्न ग्रंथों में जगह जगह पर बहुत सारे अस्त्र-सस्त्र का वर्णन आता है जैसे:
इन्द्र अस्त्र
आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र
नाग पाशा, वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र
चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र
त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र
पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र
नारायणा अस्त्र, वैष्णवअस्त्र, पाशुपत अस्त्र
ब्रह्मास्त्र ऐसा अस्त्र है जो अचूक होता है।
ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।
चतुर्दिश अस्त्र:
संरचना:
१.तीर (बाण)के अग्र सिरे पे ज्वलनशील रसायन लगा होता है, और एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पश्च सिरे पे बंधे बारूद से होता है.
२.तीर की नोक से थोडा पीछे चार छोटे तीर लगे होते हैं उनके भी पश्च सिरे पे बारूद लगा होता है.
कार्य-प्रणाली:
१.जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है, वायु के साथ घर्षण के कारण,तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है.
२.उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पे लगा बारूद जलने लगता है और इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.
३.और तीसरे चरण में तीर की नोक पे लगे, 4 छोटे तीरों पे लगा बारूद भी जल उठता है और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.
दिशा-ज्ञान की प्राचीन जडें (Ancient root of Navigation):
navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था। अंग्रेजी शब्द navigation, संस्कृत से बना है: navi -नवी(new); gation -गतिओं(motions).
विभिन्न ग्रंथों में जगह जगह पर बहुत सारे अस्त्र-सस्त्र का वर्णन आता है जैसे:
इन्द्र अस्त्र
आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र
नाग पाशा, वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र
चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र
त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र
पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र
नारायणा अस्त्र, वैष्णवअस्त्र, पाशुपत अस्त्र
ब्रह्मास्त्र ऐसा अस्त्र है जो अचूक होता है।
ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।
चतुर्दिश अस्त्र:
संरचना:
१.तीर (बाण)के अग्र सिरे पे ज्वलनशील रसायन लगा होता है, और एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पश्च सिरे पे बंधे बारूद से होता है.
२.तीर की नोक से थोडा पीछे चार छोटे तीर लगे होते हैं उनके भी पश्च सिरे पे बारूद लगा होता है.
कार्य-प्रणाली:
१.जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है, वायु के साथ घर्षण के कारण,तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है.
२.उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पे लगा बारूद जलने लगता है और इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.
३.और तीसरे चरण में तीर की नोक पे लगे, 4 छोटे तीरों पे लगा बारूद भी जल उठता है और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.
दिशा-ज्ञान की प्राचीन जडें (Ancient root of Navigation):
navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था। अंग्रेजी शब्द navigation, संस्कृत से बना है: navi -नवी(new); gation -गतिओं(motions).