वेद क्या हैं? (What are Vedas)
वास्तव में वेद किसे माना जाए, इस पर कई तरह के मत हैं. यहां हम इस भ्रम को दूर करने का प्रयास करेंगे. वैदिक साहित्य में सम्मिलित होने वाली पुस्तकें:
१. वेद मंत्र संहिताएँ – ऋग्, यजुः, साम, अथर्व.
२. प्रत्येक मंत्र संहिता के ब्राह्मण.
३. आरण्यक.
४. उपनिषद (असल में वेद, ब्राह्मण और आरण्यक का ही भाग).
५. उपवेद (प्रत्येक मंत्र संहिता का एक उपवेद).
वास्तव में केवल मंत्र संहिताएँ ही वेद हैं. अन्य दूसरी पुस्तकें जैसे ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, ६ दर्शन, गीता इत्यादि ऋषियों द्वारा लिखी गई हैं. यह सब मनुष्यों की रचनाएँ हैं, परमात्मा की नहीं. अत: जहां तक यह सब वेद के अनुकूल हो, वहीं तक समझना और अपनाना चाहिए.
प्रश्न. कात्यायन ऋषि के अनुसार तो ब्राह्मण भी ईश्वरीय हैं तब आप ब्राह्मणों को वेदों का भाग क्यों नहीं मानते?
उत्तर. १. ब्राहमण ग्रंथों को इतिहास, पुराण, कल्प, गाथा और नाराशंसी भी कहते हैं. इन में ऋषियों ने वेद मन्त्रों की व्याख्याएँ की हैं. इसलिए ये ऋषियों की रचनाएँ हैं ईश्वर की नहीं.
२.शुक्ल यजुर्वेद के कात्यायन प्रतिज्ञा परिशिष्ट को छोड़कर (कई विद्वान कात्यायन को इस का लेखक नहीं मानते) अन्य कोई भी ग्रन्थ ब्राह्मणों को वेदों का भाग नहीं कहता.
३. इसी तरह, कृष्ण यजुर्वेद के श्रौत सूत्र भी मन्त्र और ब्राहमण को एक बताते हैं. किन्तु कृष्ण यजुर्वेद में ही मन्त्र और ब्राहमण सम्मिलित हैं. अत: यह विचार केवल उसी ग्रन्थ के लिए संगत हो सकता है. जैसे ‘ धातु’ शब्द का अर्थ पाणिनि व्याकरण में – ‘ मूल’ , पदार्थ विज्ञान में ‘धातु’ (metal) और आयुर्वेद में जो शरीर को धारण करे या बनाये रखे – रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य और ओज होता है. ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद और सामवेद की किसी शाखा में ब्राह्मणों के वेद होने का प्रमाण नहीं मिलता.
४. वेद ईश्वर का शाश्वत ज्ञान हैं. उन में कोई इतिहास नहीं है. पर ब्राहमण ग्रंथों में ऐतिहासिक व्यक्तियों का वर्णन और इतिहास मिलता है.
५. वैदिक साहित्य के सभी प्रमुख ग्रन्थ ऋग्वेद, यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद की मन्त्र संहिताओं को ही वेद मानते हैं.
वेद :
ऋग १०.९०.३, यजु ३१.७, अथर्व १९.६.१३, अथर्व १०.७.२०, यजु ३५.५, अथर्व १.१०.२३, ऋग ४.५८.३,यजु १७.९ १( निरुक्त के अनुसार १३.६ ), अथर्व १५.६.९ ,अथर्व १५.६.८, अथर्व ११.७.२४
उपनिषद् :
बृहदारण्यक उपनिषद २.४.१०, १.२.५, छान्दोग्य उपनिषद् ७.१.२, मुण्डक १.१.५, नृसिंहपूर्वतपाणि, छान्दोग्य ७.७.१, तैत्तरीय १.१, तैत्तरीय २.३
ब्राह्मण:
शतपथ ब्राह्मण ११.५.८, गोपथ पूर्व २.१६, गोपथ १.१.२९
महाभारत:
द्रोणपर्व ५१.२२, शांतिपर्व २३५.१, वनपर्व १८७.१४, २१५.२२, सभापर्व ११.३१
स्मृति:
मनुस्मृति : १.२३
पुराण :
पद्मा ५.२.५०, हरिवंश, विष्णु पुराण १.२२.८२, ५.१.३६, ब्रह्मवैवर्त १४.६४
अन्य:
महाभाष्य पाश पाशणिक,कथक संहिता ४०.७,अथर्ववेद सायन भाष्य १९.९.१२,बृहदारण्यवार्तिकसार (२.४) सायन,सर्वानुक्रमणिभूमिका,रामायण ३.२८
इत्यादि.शंकराचार्य ने भी चारों मन्त्र संहिताओं को ही वेद माना है – “चतुर्विध मंत्रजातं ” (शंकराचार्य बृहदारण्यक भाष्य २ .४ .१ ० )
६. ब्राह्मण ग्रन्थ स्वयं भी वेद होने की घोषणा नहीं करते .
७. शतपथ ब्राह्मण के अनुसार वेदों में कुल ८.६४ लाख शब्द हैं.यदि ब्राह्मणों को भी शामिल किया जाता, तो यह संख्या कहीं अधिक होती.
८. केवल मन्त्र ही जटा, माला, शिखा, रेखा, ध्वज, दंड, रथ और घन पाठ की विधियों से सुरक्षित किए गए हैं. ब्राह्मण ग्रंथों की सुरक्षा का ऐसा कोई उपाय नहीं है.
९. केवल मन्त्रों के लिए ही स्वर भेद और मात्राओं का उपयोग किया जाता है. ब्राह्मणों के लिए नहीं.
१०. प्रत्येक मन्त्र का अपना विशिष्ट ऋषि, देवता, छंद और स्वर है. ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसा नहीं है.
११. यजु: प्रतिशाख्य में कहा गया है कि मन्त्रों से पूर्व ‘ओम’ और ब्राह्मण श्लोकों से पूर्व ‘अथ’ बोला जाना चाहिए. इसी तरह की बात ऐतरेय ब्राह्मण में भी कही गयी है.
१२. ब्राह्मणों में स्वयं उनके लेखकों की जानकारी मिलती है. और मन्त्रों की व्याख्या करते हुए कई स्थानों पर कहा है “नत्र तिरोहितमिवस्ति” - हमने सरल भागों को छोड़ कर केवल कठिन भागों की ही व्याख्या की है.
प्रश्न. पुराणों को ब्राह्मण कैसे कहा जा सकता है जब कि पुराणों का अर्थ को वेद व्यास के बनाये १८ पुराणों से है?
उत्तर. यह एक बहुत ही गलत धारणा है. पुराण का अर्थ पुरातन या पुराना है और यह नए पुराण तो बहुत आधुनिक समय में लिखे गए हैं.
तैत्तरीय आरण्यक २.९ और आश्वलायन गृह्यसूत्र ३.३.१ में स्पष्ट वर्णित है कि ब्राह्मण ही कल्प, गाथा, पुराण, इतिहास या नाराशंसी कहे जाते हैं. आचार्य शंकर भी बृहदारण्यक उपनिषद २.४.१० के भाष्य में यही कहते हैं.
तैत्तरीय आरण्यक ८.२१ की व्याख्या में सायण का भी यही मत है. काफ़ी प्राचीन माने जाने वाले शतपथ ब्राह्मण(३.४.३.१३) अश्वमेध यज्ञ के ९ वें दिन पुराणों को सुनने का विधान करते हैं. अब यदि पुराणों से मतलब नए ब्रह्मवैवर्त आदि पुराणों से है, तो श्री राम और श्री कृष्ण आदि ने अश्वमेध यज्ञ के ९ वें दिन किस का श्रवण किया था? वेद व्यास के जन्म के बहुत पहले ही ब्राह्मण ग्रंथ मौजूद थे. इन नए पुराणों को झूठे ही वेद व्यास पर थोपा गया है. ब्रह्मवैवर्त पुराण को पढने के बाद तो उसे योग दर्शन पर भाष्य करने वाले ऋषि की रचना मानना संभव ही नहीं है.
प्रश्न. वेदों में इतिहास भी है – जैसे यजुर्वेद ३.६२ में जमदग्नि और कश्यप ऋषियों के नाम मिलते हैं. कई वैदिक मंत्रों में ऐतिहासिक व्यक्तियों का भी उल्लेख है.
उत्तर. इन से भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है. वेदों में आए जमदग्नि और कश्यप शब्द ऐतिहासिक पुरुष नहीं हैं. शतपथ के अनुसार जमदग्नि का अर्थ आंखें तथा कश्यप शब्द का अर्थ प्राण या जीवनीय शक्ति है.और वेदों में यही अर्थ प्रयुक्त हुआ है.
इसी तरह, वेदों में आए हुए सभी नाम गुणवाचक हैं. बाद में मनुष्यों ने इन शब्दों को नाम के रूप में अपना लिया. जैसे, महाभारत में आए हुए लाल और कृष्ण – आडवाणी नहीं हो सकते और शंकराचार्य द्वारा वर्णित ‘माया’ का मतलब आज की मायावती से नहीं है. ऐसा ही वेदों में आये शब्दों के साथ भी है.
प्रश्न. वेदों की शाखाएं क्या हैं? वेदों की ११३१ शाखाएं बतलाई जाती हैं, जो बहुत सी लुप्त हो गई हैं, तब यह कैसे माना जाए कि वेद मूल स्वरुप में ही हैं?
उत्तर. वेदों की शाखाओं का तात्पर्य मूल वेद संहिताओं से नहीं है. वेदों को समझने, उनके अध्ययन आदि तथा वेदों की व्याख्या करने के लिए शाखाएं बनाई गई हैं. समय – समय पर प्रचलित प्रणालियों के अनुसार मन्त्रों के अर्थ सरल करने के लिये शाखाएं मूल मन्त्रों में परिवर्तन करती रहती हैं. किसी यज्ञ विशेष के लिए या अन्य किन्ही कारणों से कई शाखाएं मूल मंत्रों के क्रम को आगे- पीछे भी करती हैं. इसी तरह कुछ शाखाओं में मंत्र तथा ब्राह्मण ग्रंथों का भाग मिला दिया गया है.
मूल चारों वेद संहिताएँ – अपौरुषेय हैं. वेदों की शाखाएं तथा ब्राह्मण ग्रंथ मनुष्य कृत हैं. उन्हें वहीं तक विश्वासयोग्य माना जा सकता है जहां तक वे वेदों के अनुकूल हैं. मूल मंत्र संहिताओं का परम्परा से जतन किया गया है और विद्वानों ने भी भाष्य उन पर ही किया है.
प्रश्न. अन्य ग्रंथ - उपनिषद, उपवेद,गीता इत्यादि क्या ईश्वरीय नहीं हैं?
उत्तर. इस का उत्तर बहुत कुछ पहले भी दिया जा चुका है. यह सब हमारे महान पूर्वजों – ऋषियों द्वारा निर्मित महान ग्रंथ हैं पर यह भी ईश्वरीय रचना वेदों की बराबरी नहीं कर सकते.
यदि इन ग्रंथों की रचना ईश्वरीय होती तो यह वेदों की ही तरह अद्वितीय रक्षा पद्धति से युक्त होते. पर वेदों के अलावा अन्य किसी भी ग्रंथ में यह लक्षण नहीं दिखता.
अत: इन ग्रंथों में भी जो बातें वेदों के विपरीत हैं उन्हें मान्य नहीं किया जा सकता क्योंकि ईश्वरीय ज्ञान सर्वोपरि है. यह बात विश्व की सभी पुस्तकों पर लागू होती है. हमारी संस्कृति के सभी ग्रंथ वेदों को ही सत्य का अंतिम प्रमाण मानते हैं.
प्रश्न. वेदों में तो केवल कर्म कांड और ईश्वर पूजा का ही विधान है. क्या दर्शन तथा अन्य व्यवहारिक ज्ञान के लिए हमें दूसरे ग्रंथों की आवश्यकता नहीं है ?
उत्तर. ये झूठी बातें वेदों को न पढने वाले लोगों ने फ़ैला रखी हैं. हमारी संस्कृति के सभी महान ग्रंथकार अपनी रचना को वेदों पर आधारित ही बताते हैं. वे वेदों को ही सब सत्य विद्या का मूल मानते हैं.
उपनिषद ,गीता जैसे सभी दार्शनिक ग्रंथों का उद्गम भी वेद ही हैं. यह सभी ग्रंथ वेद और सत्य को समझने के लिए ही बनाये गए और इन ग्रंथों में ऐसी कोई बात नहीं है जो वेदों में पहले से ही मौजूद नहीं हो. जैसे कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं – वेद परम प्रमाण हैं और अन्य ग्रंथ तो उस तक पहुंचने की सीढियां मात्र हैं – इसलिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं कोई सीढ़ी हमें वेदों से दूर तो नहीं ले जा रही.
वेद एकमात्र सर्वत्र व्यापक ईश्वर का ही बखान करते हैं और शाश्वत ज्ञान की निधि होने से उन में कहीं कोई कर्म कांड नहीं है. अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ही पथभ्रष्ट लोगों ने वेदों के विषय में गलत धारणाएं फैलाईं हैं.यह हमारा परम कर्तव्य है कि हम इन सभी पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर – वेद और उसके सत्य उद्देश्य का प्रचार करें.
१. वेद मंत्र संहिताएँ – ऋग्, यजुः, साम, अथर्व.
२. प्रत्येक मंत्र संहिता के ब्राह्मण.
३. आरण्यक.
४. उपनिषद (असल में वेद, ब्राह्मण और आरण्यक का ही भाग).
५. उपवेद (प्रत्येक मंत्र संहिता का एक उपवेद).
वास्तव में केवल मंत्र संहिताएँ ही वेद हैं. अन्य दूसरी पुस्तकें जैसे ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, ६ दर्शन, गीता इत्यादि ऋषियों द्वारा लिखी गई हैं. यह सब मनुष्यों की रचनाएँ हैं, परमात्मा की नहीं. अत: जहां तक यह सब वेद के अनुकूल हो, वहीं तक समझना और अपनाना चाहिए.
प्रश्न. कात्यायन ऋषि के अनुसार तो ब्राह्मण भी ईश्वरीय हैं तब आप ब्राह्मणों को वेदों का भाग क्यों नहीं मानते?
उत्तर. १. ब्राहमण ग्रंथों को इतिहास, पुराण, कल्प, गाथा और नाराशंसी भी कहते हैं. इन में ऋषियों ने वेद मन्त्रों की व्याख्याएँ की हैं. इसलिए ये ऋषियों की रचनाएँ हैं ईश्वर की नहीं.
२.शुक्ल यजुर्वेद के कात्यायन प्रतिज्ञा परिशिष्ट को छोड़कर (कई विद्वान कात्यायन को इस का लेखक नहीं मानते) अन्य कोई भी ग्रन्थ ब्राह्मणों को वेदों का भाग नहीं कहता.
३. इसी तरह, कृष्ण यजुर्वेद के श्रौत सूत्र भी मन्त्र और ब्राहमण को एक बताते हैं. किन्तु कृष्ण यजुर्वेद में ही मन्त्र और ब्राहमण सम्मिलित हैं. अत: यह विचार केवल उसी ग्रन्थ के लिए संगत हो सकता है. जैसे ‘ धातु’ शब्द का अर्थ पाणिनि व्याकरण में – ‘ मूल’ , पदार्थ विज्ञान में ‘धातु’ (metal) और आयुर्वेद में जो शरीर को धारण करे या बनाये रखे – रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य और ओज होता है. ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद और सामवेद की किसी शाखा में ब्राह्मणों के वेद होने का प्रमाण नहीं मिलता.
४. वेद ईश्वर का शाश्वत ज्ञान हैं. उन में कोई इतिहास नहीं है. पर ब्राहमण ग्रंथों में ऐतिहासिक व्यक्तियों का वर्णन और इतिहास मिलता है.
५. वैदिक साहित्य के सभी प्रमुख ग्रन्थ ऋग्वेद, यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद की मन्त्र संहिताओं को ही वेद मानते हैं.
वेद :
ऋग १०.९०.३, यजु ३१.७, अथर्व १९.६.१३, अथर्व १०.७.२०, यजु ३५.५, अथर्व १.१०.२३, ऋग ४.५८.३,यजु १७.९ १( निरुक्त के अनुसार १३.६ ), अथर्व १५.६.९ ,अथर्व १५.६.८, अथर्व ११.७.२४
उपनिषद् :
बृहदारण्यक उपनिषद २.४.१०, १.२.५, छान्दोग्य उपनिषद् ७.१.२, मुण्डक १.१.५, नृसिंहपूर्वतपाणि, छान्दोग्य ७.७.१, तैत्तरीय १.१, तैत्तरीय २.३
ब्राह्मण:
शतपथ ब्राह्मण ११.५.८, गोपथ पूर्व २.१६, गोपथ १.१.२९
महाभारत:
द्रोणपर्व ५१.२२, शांतिपर्व २३५.१, वनपर्व १८७.१४, २१५.२२, सभापर्व ११.३१
स्मृति:
मनुस्मृति : १.२३
पुराण :
पद्मा ५.२.५०, हरिवंश, विष्णु पुराण १.२२.८२, ५.१.३६, ब्रह्मवैवर्त १४.६४
अन्य:
महाभाष्य पाश पाशणिक,कथक संहिता ४०.७,अथर्ववेद सायन भाष्य १९.९.१२,बृहदारण्यवार्तिकसार (२.४) सायन,सर्वानुक्रमणिभूमिका,रामायण ३.२८
इत्यादि.शंकराचार्य ने भी चारों मन्त्र संहिताओं को ही वेद माना है – “चतुर्विध मंत्रजातं ” (शंकराचार्य बृहदारण्यक भाष्य २ .४ .१ ० )
६. ब्राह्मण ग्रन्थ स्वयं भी वेद होने की घोषणा नहीं करते .
७. शतपथ ब्राह्मण के अनुसार वेदों में कुल ८.६४ लाख शब्द हैं.यदि ब्राह्मणों को भी शामिल किया जाता, तो यह संख्या कहीं अधिक होती.
८. केवल मन्त्र ही जटा, माला, शिखा, रेखा, ध्वज, दंड, रथ और घन पाठ की विधियों से सुरक्षित किए गए हैं. ब्राह्मण ग्रंथों की सुरक्षा का ऐसा कोई उपाय नहीं है.
९. केवल मन्त्रों के लिए ही स्वर भेद और मात्राओं का उपयोग किया जाता है. ब्राह्मणों के लिए नहीं.
१०. प्रत्येक मन्त्र का अपना विशिष्ट ऋषि, देवता, छंद और स्वर है. ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसा नहीं है.
११. यजु: प्रतिशाख्य में कहा गया है कि मन्त्रों से पूर्व ‘ओम’ और ब्राह्मण श्लोकों से पूर्व ‘अथ’ बोला जाना चाहिए. इसी तरह की बात ऐतरेय ब्राह्मण में भी कही गयी है.
१२. ब्राह्मणों में स्वयं उनके लेखकों की जानकारी मिलती है. और मन्त्रों की व्याख्या करते हुए कई स्थानों पर कहा है “नत्र तिरोहितमिवस्ति” - हमने सरल भागों को छोड़ कर केवल कठिन भागों की ही व्याख्या की है.
प्रश्न. पुराणों को ब्राह्मण कैसे कहा जा सकता है जब कि पुराणों का अर्थ को वेद व्यास के बनाये १८ पुराणों से है?
उत्तर. यह एक बहुत ही गलत धारणा है. पुराण का अर्थ पुरातन या पुराना है और यह नए पुराण तो बहुत आधुनिक समय में लिखे गए हैं.
तैत्तरीय आरण्यक २.९ और आश्वलायन गृह्यसूत्र ३.३.१ में स्पष्ट वर्णित है कि ब्राह्मण ही कल्प, गाथा, पुराण, इतिहास या नाराशंसी कहे जाते हैं. आचार्य शंकर भी बृहदारण्यक उपनिषद २.४.१० के भाष्य में यही कहते हैं.
तैत्तरीय आरण्यक ८.२१ की व्याख्या में सायण का भी यही मत है. काफ़ी प्राचीन माने जाने वाले शतपथ ब्राह्मण(३.४.३.१३) अश्वमेध यज्ञ के ९ वें दिन पुराणों को सुनने का विधान करते हैं. अब यदि पुराणों से मतलब नए ब्रह्मवैवर्त आदि पुराणों से है, तो श्री राम और श्री कृष्ण आदि ने अश्वमेध यज्ञ के ९ वें दिन किस का श्रवण किया था? वेद व्यास के जन्म के बहुत पहले ही ब्राह्मण ग्रंथ मौजूद थे. इन नए पुराणों को झूठे ही वेद व्यास पर थोपा गया है. ब्रह्मवैवर्त पुराण को पढने के बाद तो उसे योग दर्शन पर भाष्य करने वाले ऋषि की रचना मानना संभव ही नहीं है.
प्रश्न. वेदों में इतिहास भी है – जैसे यजुर्वेद ३.६२ में जमदग्नि और कश्यप ऋषियों के नाम मिलते हैं. कई वैदिक मंत्रों में ऐतिहासिक व्यक्तियों का भी उल्लेख है.
उत्तर. इन से भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है. वेदों में आए जमदग्नि और कश्यप शब्द ऐतिहासिक पुरुष नहीं हैं. शतपथ के अनुसार जमदग्नि का अर्थ आंखें तथा कश्यप शब्द का अर्थ प्राण या जीवनीय शक्ति है.और वेदों में यही अर्थ प्रयुक्त हुआ है.
इसी तरह, वेदों में आए हुए सभी नाम गुणवाचक हैं. बाद में मनुष्यों ने इन शब्दों को नाम के रूप में अपना लिया. जैसे, महाभारत में आए हुए लाल और कृष्ण – आडवाणी नहीं हो सकते और शंकराचार्य द्वारा वर्णित ‘माया’ का मतलब आज की मायावती से नहीं है. ऐसा ही वेदों में आये शब्दों के साथ भी है.
प्रश्न. वेदों की शाखाएं क्या हैं? वेदों की ११३१ शाखाएं बतलाई जाती हैं, जो बहुत सी लुप्त हो गई हैं, तब यह कैसे माना जाए कि वेद मूल स्वरुप में ही हैं?
उत्तर. वेदों की शाखाओं का तात्पर्य मूल वेद संहिताओं से नहीं है. वेदों को समझने, उनके अध्ययन आदि तथा वेदों की व्याख्या करने के लिए शाखाएं बनाई गई हैं. समय – समय पर प्रचलित प्रणालियों के अनुसार मन्त्रों के अर्थ सरल करने के लिये शाखाएं मूल मन्त्रों में परिवर्तन करती रहती हैं. किसी यज्ञ विशेष के लिए या अन्य किन्ही कारणों से कई शाखाएं मूल मंत्रों के क्रम को आगे- पीछे भी करती हैं. इसी तरह कुछ शाखाओं में मंत्र तथा ब्राह्मण ग्रंथों का भाग मिला दिया गया है.
मूल चारों वेद संहिताएँ – अपौरुषेय हैं. वेदों की शाखाएं तथा ब्राह्मण ग्रंथ मनुष्य कृत हैं. उन्हें वहीं तक विश्वासयोग्य माना जा सकता है जहां तक वे वेदों के अनुकूल हैं. मूल मंत्र संहिताओं का परम्परा से जतन किया गया है और विद्वानों ने भी भाष्य उन पर ही किया है.
प्रश्न. अन्य ग्रंथ - उपनिषद, उपवेद,गीता इत्यादि क्या ईश्वरीय नहीं हैं?
उत्तर. इस का उत्तर बहुत कुछ पहले भी दिया जा चुका है. यह सब हमारे महान पूर्वजों – ऋषियों द्वारा निर्मित महान ग्रंथ हैं पर यह भी ईश्वरीय रचना वेदों की बराबरी नहीं कर सकते.
यदि इन ग्रंथों की रचना ईश्वरीय होती तो यह वेदों की ही तरह अद्वितीय रक्षा पद्धति से युक्त होते. पर वेदों के अलावा अन्य किसी भी ग्रंथ में यह लक्षण नहीं दिखता.
अत: इन ग्रंथों में भी जो बातें वेदों के विपरीत हैं उन्हें मान्य नहीं किया जा सकता क्योंकि ईश्वरीय ज्ञान सर्वोपरि है. यह बात विश्व की सभी पुस्तकों पर लागू होती है. हमारी संस्कृति के सभी ग्रंथ वेदों को ही सत्य का अंतिम प्रमाण मानते हैं.
प्रश्न. वेदों में तो केवल कर्म कांड और ईश्वर पूजा का ही विधान है. क्या दर्शन तथा अन्य व्यवहारिक ज्ञान के लिए हमें दूसरे ग्रंथों की आवश्यकता नहीं है ?
उत्तर. ये झूठी बातें वेदों को न पढने वाले लोगों ने फ़ैला रखी हैं. हमारी संस्कृति के सभी महान ग्रंथकार अपनी रचना को वेदों पर आधारित ही बताते हैं. वे वेदों को ही सब सत्य विद्या का मूल मानते हैं.
उपनिषद ,गीता जैसे सभी दार्शनिक ग्रंथों का उद्गम भी वेद ही हैं. यह सभी ग्रंथ वेद और सत्य को समझने के लिए ही बनाये गए और इन ग्रंथों में ऐसी कोई बात नहीं है जो वेदों में पहले से ही मौजूद नहीं हो. जैसे कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं – वेद परम प्रमाण हैं और अन्य ग्रंथ तो उस तक पहुंचने की सीढियां मात्र हैं – इसलिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं कोई सीढ़ी हमें वेदों से दूर तो नहीं ले जा रही.
वेद एकमात्र सर्वत्र व्यापक ईश्वर का ही बखान करते हैं और शाश्वत ज्ञान की निधि होने से उन में कहीं कोई कर्म कांड नहीं है. अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ही पथभ्रष्ट लोगों ने वेदों के विषय में गलत धारणाएं फैलाईं हैं.यह हमारा परम कर्तव्य है कि हम इन सभी पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर – वेद और उसके सत्य उद्देश्य का प्रचार करें.