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भारत में 12 ज्योतिर्लिंग थे 11 का सब को पता हें 12 व कहा गया ?

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भारत में 12 ज्योतिर्लिंग थे 11 का सब को पता हें 12 व कहा गया ? ------ ______________________________ _______________________ भारत में 12 ज्योतिर्लिंग थे 11 का स ब को पता हें 12 व कहा गया ? आपको पता हें? चलो में बताता हूँ 12 वे ज्योतिर्लिंग का नाम हे अग्रेश्वर महादेव जो की आगरा में स्थित था| अब आप कहेंगे की आगरा में आज की तारीख में तो कोई शिव जी का ज्योतिर्लिंग नही हें ? किसी जमाने में, जिसे आज सब ताज मह ल कहते हें, वो शिवालय हुआ करता था |जिसे शाहजहाँ ने अपनी पत्नी या कहे की बच्चे पैदा करने की मशीन मुमताज की लाश को दफ़नकरने के लिए जबरदस्ती छीन लिया था | >प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है——— =”महल” शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता… यहाँ यह व्याख्या करना कि, महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है……वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है- पहला - शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था, बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मान ी था । दूसरा - किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भ

What is Human Life and Cosmic Life

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Human Life and Cosmic Life The main diffrence and relation between human life and cosmic life. The diagram below represents the cosmic consciousness and its fractal like characteristics that are seen within a spiral and within nature. The consciousness itself is related to the value of PI in the circle of life from the heavens to earth and back again. The vortex seen within a spiral is represented above and the axis points of the Chi Rho is the center of the vortex. The electromagnetic vortices that are displayed in crop circles and snowflakes are examples of how the Chi Rho or Star of David is formed due to these electromagnetic torsion fields. The star of David can be seen within these patterns which also incorporate the Chi Rho. The hebrew alphabet can also be written out from this pattern as well The spiral of life is also associated with the fibonnaci sequence or Golden ratio which one can get when you divide the numerical value of the tree of life and

शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह

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सुश्रुत प्राचीन भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और चिकित्सज्ञ थे। आयुर्वेद की एक संहिता के सुश्रुतसंहिता के प्रणेता थे। इनका जन्म लगभग 2000 ईoपूo भारत में हुआ | इन्होने  सुश्रुत संहिता  नामक ग्रन्थ लिखा|  यह आयुर्वेद एवं शल्यचिकित्सा का प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है।  सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसमें शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे। ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे। इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं।  सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की। सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी। सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे। सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद

वेद:-आधुनिक विज्ञान का मूल आधार

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निकोल टेस्ला (10 जुलाई 1856 – 7 जनवरी 1943) जिन्हें 20वी  सदी का जन्मदाता  कहा जाता है इन्होने प्रत्यावर्ती विधुत धारा, विधुत चुम्बकीय क्षेत्र तथा कई अन्य  महतवपूर्ण खोजे की | इनके अतिरिक्त वैज्ञानिक श्रोडेंगर, आइंस्टीन, नील्स बोहर तथा आधुनिक परमाणु जनक राबर्ट औपेन हाइमर जिन्होंने आधुनिक विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया | ये सभी वेदों तथा उपनिषदों के अनुगामी (विद्यार्थी) थे | जब स्वामी विवेकानंद न्यूयॉर्क गये तब उन्होंने वहां एक सम्मेलन  में संस्कृत में भाषण दिया और भारतीय सभ्यता के बारे में बताया। तब उस सम्मेलन  में उपस्थित लोगो और वैदिक सभ्यता में रूचि हुई और वे स्वामीजी से कई बार मिले और वैदिक तथ्यों पर चर्चा की । निम्न विडियो क्लिप को  समय 4:30 से 5:50 तक देखे अधिक जानकारी के लिए देखें : http://www.teslasociety.com/tesla_and_swami.htm http://www.krishnapath.org/quantum-physics-came-from-the-vedas-schrodinger-einstein-and-tesla-were-all-vedantists/  

पहला हवाईजहाज भारत में बना ।

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यदि में आप से पुछु की पहला हवाई जहाज किसने बनाया तो निश्चित तोर पर अधिक लोगो के मन में आयेगा  Wright brothers  का नाम आयेगा। परन्तु यह सत्य नही है।  आज के समय का दुनिया का पहला विमान  शिवकर बापूजी तलपडे   (1864–1916) ने बनाया था जो की मुंबई के रहने वाले थे  । तथा  P athare Prabhu community के सदस्य थे।  शिवकर  जी संस्कृत व वेदों के महान  ज्ञाता थे। उन्होंने उस विमान का नाम मारुतसखा  (मारुत  अर्थात  हवा, वायु ) (सखा का अर्थ मित्र ) रखा। मारुतसखा  शब्द का प्रयोग ऋग्वेद (7.92.2) में देवी सरस्वती के लिए प्रयुक्त हुआ है। सन  1895 में  उन्होंने इस विमान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया और 1500 फुट की ऊंचाई तक उड़ाया । इनकी रचना का मुख्य आधार  महर्षि भारद्वाज रचित  ‘ विमान शास्त्र ‘  था  जैसा के हम जानते है उस समय अंग्रेजो की हुकूमत थी उन्हें एक भारतीय की यह सफलता रास  नही आयी  । अंग्रेजी  हुकूमत के कहने पर बड़ोदा के रजवाडो ने शिवकर जी की और अधिक सहायता नही की। अंग्रेजों ने एक समझोते के नाम पर शिवकर जी से धोखा किया और उस विमान की रचना से सम्बंधित समस्त दस्तावेज उनसे हथिया लिए । फिर क्य

महर्षि भारद्वाज रचित ‘विमान शास्त्र‘

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जन सामान्य में हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों के बारे में ऐसी धारणा जड़ जमाकर बैठी हुई है कि वे जंगलों में रहते थे, जटाजूटधारी थे, भगवा वस्त्र पहनते थे, झोपड़ियों में रहते हुए दिन-रात ब्रह्म-चिन्तन में निमग्न रहते थे, सांसारिकता से उन्हें कुछ भी लेना-देना नहीं रहता था। इसी पंगु अवधारणा का एक बहुत बड़ा अनर्थकारी पहलू यह है कि हम अपने महान पूर्वजों के जीवन के उस पक्ष को एकदम भुला बैठे, जो उनके महान् वैज्ञानिक होने को न केवल उजागर करता है वरन् सप्रमाण पुष्ट भी करता है। महर्षि भरद्वाज हमारे उन प्राचीन विज्ञानवेत्ताओं में से ही एक ऐसे महान् वैज्ञानिक थे जिनका जीवन तो अति साधारण था लेकिन उनके पास लोकोपकारक विज्ञान की महान दृष्टि थी। महर्षि भारद्वाज  और कोई नही बल्कि वही  ऋषि है जिन्हें त्रेता युग में  भगवान  श्री राम  से मिलने का सोभाग्य दो बार प्राप्त हुआ । एक बार श्री राम के  वनवास काल में तथा दूसरी बार श्रीलंका से लौट कर अयोध्या जाते समय। इसका वर्णन वाल्मिकी रामायण तथा तुलसीदास कृत रामचरितमानस में मिलता है |  तीर्थराज प्रयाग में संगम से थोड़ी दूरी पर इनका  आश्रम  था, जो आज भी विद्यमान ह

पृथ्वी का भोगोलिक मानचित्र: वेद व्यास द्वारा

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यदि पृथ्वी के भोगोलिक मानचित्र की बात की  जाये तो माना  जाता है की क्रिस्टोफ़र कोलंबस ( 31 अक्टूबर 1451 – 20 मई 1506 ) ने पृथ्वी  का प्रथम भोगोलिक मानचित्र बनाया अर्थात  लगभग  525 वर्ष पूर्व । अब में मुद्दे पर आता हूँ । महाभारत का समय कम से कम 5000 वर्ष ईसा पूर्व अर्थात आज से कम से कम 7000 वर्ष पूर्व का माना  जाता है उसी समय महान दिव्यद्रष्टा ऋषि वेद व्यास ने महाभारत नामक धार्मिक व एतिहासिक ग्रन्थ की रचना की । जिसमे उन्होंने स्पष्ट रूप से पृथ्वी की भोगोलिक स्थति  का उल्लेख किया । उन्होंने लिखा : सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु  कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥ यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्। —वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारत अर्थात: हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संर

पुनः प्रकट हुई सरस्वती नदी

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भारत की 7 प्रमुख नदियाँ मानी जाती है जो इस प्रकार है : गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, शिप्रा, गोदावरी तथा कावेरी । अब तक सरस्वती नदी को छोड़ कर बाकि समस्त नदियाँ हमारे पास थी । सरस्वती नदी का विवरण ऋग्वेद से लेकर पुराणो तक में कई  बार आया है | यजुर्वेद: यजुर्वेद की वाजस्नेयी संहिता ३४.११ में कहा गया है कि पांच नदियाँ अपने पूरे प्रवाह के साथ सरस्वती नदी में प्रविष्ट होती हैं, ये पांच नदियाँ पंजाब की सतलुज, रावी, व्यास, चेनाव और दृष्टावती हो सकती हैं। वी. एस वाकणकर के अनुसार पांचों नदियों के संगम के सूखे हुए अवशेष राजस्थान के बाड़मेर या जैसलमेर के निकट पंचभद्र तीर्थ पर देखे जा सकते है। रामायण: वाल्मीकि रामायण में भरत के कैकय देश से अयोध्या आने के प्रसंग में सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है- 'सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च, उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्'    सरस्वती नदी के तटवर्ती सभी तीर्थों का वर्णन महाभारत में शल्यपर्व के 35 वें से 54 वें अध्याय तक सविस्तार दिया गया है। इन स्थानों की यात्रा बलराम ने की थी। जिस स्थान पर मरूभूमि में सरस्वती

गरूत्वाकर्षण की खोज

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गरूत्वाकर्षण की खोज का श्रेय न्यूटन (25 दिसम्बर 1642 – 20 मार्च 1726) को दिया जाता है।  माना  जाता है की सन 1666 में गरूत्वाकर्षण की खोज न्यूटन ने की | तो क्या गरूत्वाकर्षण  जैसी मामूली चीज़ की खोज मात्र 350 साल पहले ही हुई है? ...नहीं | हम सभी विद्यालयों में पढ़ते हैं की न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी परन्तु  मह्रिषी भाष्कराचार्य  ने न्यूटन से लगभग 500 वर्ष पूर्व ही पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर एक पूरा ग्रन्थ रच डाला था | भास्कराचार्य प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। इनका जन्म 1114 ई0 में  हुआ था। भास्कराचार्य उज्जैन में स्थित वेधशाला के प्रमुख थे। यह वेधशाला प्राचीन भारत में गणित और खगोल शास्त्र का अग्रणी केंद्र था। जब इन्होंने "सिद्धान्त शिरोमणि" नामक ग्रन्थ लिखा तब वें मात्र 36 वर्ष के थे। "सिद्धान्त शिरोमणि" एक विशाल ग्रन्थ है (पढने हेतु यहाँ क्लिक करें ) जिसके चार भाग हैं  (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) गोलाध्याय और (4) ग्रह गणिताध्याय। लीलावती भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। अपनी पुत्री के नाम पर ही उन्होंने पुस्तक का ना

आर्यभट्ट:एक महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद् व खगोलशास्त्री

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भारत के इन महान वैज्ञानिक का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में 476 ई. में हुआ था। उन्होंने अपने आर्यभट्टीय नामक ग्रन्थ में कुल 3 पृष्ठों के समा सकने वाले 33 श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा 5 पृष्ठों में 75 श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- 'आर्यभट्ट सिद्धांत'। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती।   आर्यभटीय  के एक श्‍लोक में आर्यभट जानकारी देते हैं कि उन्‍होंने इस पुस्‍तक की रचना कुसुमपुर में की है और उस समय उनकी आयु 23 साल की थी। वे लिखते हैं : ''कलियुग के 3600 वर्ष बीत चुके हैं और मेरी आयु 23 साल की है, जबकि मैं यह ग्रंथ लिख रहा हूं।''  भारतीय ज्‍योतिष की परंपरा के अनुसार कलियुग का आरंभ ईसा पूर्व 3101 में हुआ था। इस हिसाब से 49

परमाणुशास्त्र के जनक आचार्य कणाद

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महान परमाणुशास्त्री आचार्य कणाद 6 सदी ईसापूर्व  गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारका के निकट) में जन्मे थे। इन्होने वैशेषिक दर्शनशास्त्र की रचना की  |   दर्शनशास्त्र (Philosophy) वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है| माना जाता है कि परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार सर्वप्रथम इन्होंने किया था  इसलिए इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम  कण  पड़ा | महर्षि कणाद ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था ‘यतो भ्युदयनि:श्रेय स सिद्धि:स धर्म:‘ जिस माध्यम से अभ्युदय अर्थात्‌ भौतिक दृष्टि से तथा नि:श्रेयस याने आध्यात्मिक दृष्टि से सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है, उसे धर्म कहते हैं। परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन के १०वें अध्याय में कहते हैं  ‘दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय‘ अर्थात्‌ प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है।  इसी प्रकार महर्षि कणाद कहते हैं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश

मिल गई भगवान श्री कृष्ण की नगरी: द्वारिका

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महाभारत के समय (लगभग 7000 वर्ष पूर्व) श्री कृष्ण की जिस दवारिका नगरी का उल्लेख महाभारत ग्रन्थ, भागवत पुराण आदि में मिलता है वो नगरी गुजरात के निकट  समुद्र की गहराइयों में पाई गई है । महाभारत में इस नगरी के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है की श्री कृष्ण के आदेश पर देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने दवारिका समुद्र के मध्य में बसाई थी । परन्तु अब तक पुराणों में वर्णित भोगोलिक संकेतों का अनुसरण करने के पश्चात भी उस स्थान पर कोई  ऐसी नगरी नही पाई गई। इसी  कारण कई मतान्तरों में इस नगरी को काल्पनिक माना गया कहा गया की कभी ऐसी समुद्र पर स्थित नगरी थी ही नही। किन्तु अपने वो कहावत तो सुनी ही होगी "सांच को आंच क्या ?  " भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण    के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गुजरात में समुद्र नारायण मंदिर के आसपास के इलाके को आज द्वारिका के नाम से जाना जाता है। काफी समय से जाने-माने शोधकर्ताओं ने यहां पुराणों में वर्णित द्वारिका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि हमने 2005 में द्वारिका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया था। इस अभियान में हमें

महान रसायनशास्त्री व धातुकर्मी: नागार्जुन

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प्राचीन भारत में  नागार्जुन नाम के महान रसायन शास्त्री हुए हैं। इनकी जन्म तिथि एवं जन्मस्थान के विषय में अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार इनका जन्म 2 शताब्दी में हुआ था तथा अन्य  मतानुसार नागार्जुन का जन्म सन् ९३१ में गुजरात में सोमनाथ के निकट दैहक नामक किले में हुआ था| नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें ' रस रत्नाकर ' और ' रसेन्द्र मंगल ' बहुत प्रसिद्ध हैं। रसायनशास्त्री व धातुकर्मी  होने के साथ साथ  इन्होंने  अपनी चिकित्सकीय ‍सूझबूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें ' कक्षपुटतंत्र ', ' आरोग्य मंजरी ', ' योग सार ' और ' योगाष्टक ' हैं। अपनी पुस्तक  रसरत्नाकर में इन्होने रसायन का अथाह ज्ञान पिरो दिया   | नागार्जुन के रस रत्नाकर में अयस्क सिनाबार से पारद को प्राप्त करने की आसवन (डिस्टीलेशन) विधि,  रजत के धातुकर्म का वर्णन   तथा वनस्पतियों से कई प्रकार के अम्ल और क्षार की प्राप्ति की भी व

ब्रह्मगुप्त: प्रतिभाशाली गणितज्ञ

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हमारे देश में जन्मे गणितज्ञों में ब्रह्मगुप्त का स्थान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है | गणित के साथ साथ ये खगोल शास्त्र तथा ज्योतिष में भी पारंगत थे | आचार्य ब्रह्मगुप्त का जन्म राजस्थान राज्य के भीनमाल शहर में ईस्वी सन् 598 में हुआ था। वे तत्कालीन गुर्जर प्रदेश (भीनमाल) के अन्तर्गत आने वाले प्रख्यात शहर उज्जैन (वर्तमान मध्य प्रदेश) की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे और इस दौरान उन्होने दो विशेष ग्रन्थ लिखे: 1.  ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त  (सन ६२८ में) और 2.  खण्डखाद्यक या खण्डखाद्यपद्धति  (सन् ६६५ ई में) 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' उनका सबसे पहला ग्रन्थ माना जाता है इसके साढ़े चार अध्याय मूलभूत गणित को समर्पित हैं। जिसमें शून्य का एक अलग अंक के रूप में उल्लेख किया गया है । यही नहीं, बल्कि इस ग्रन्थ में ऋणात्मक (negative) अंकों और शून्य पर गणित करने के सभी नियमों का वर्णन भी किया गया है । ब्रह्मगुप्त ने द्विघातीय अनिर्णयास्पद समीकरणों ( Nx 2  + 1 = y 2  ) के हल की विधि भी खोज निकाली। इनकी विधि का नाम  चक्रवाल विधि  है। गणित के सिद्धान्तों का ज्योतिष में प्रयोग करने वाले यह प्रथम व्यक्ति थ

प्राचीन भारत में हुए परमाण्विक युद्ध {Atomic Mahabharata}

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आधुनिक परमाणु बम का सफल परिक्षण 16 जुलाई 1945 को New Mexico के एक दूर दराज स्थान में किया गया | इस बम का निर्माण अमेरिका के एक वैज्ञानिक  Julius Robert Oppenheimer  के नेतृत्व में किया गया | इन्हें परमाणु बम का जनक भी कहा जाता है | इस एटम बम का नाम उन्होंने  त्रिदेव (Trinity)  रखा | { त्रिदेव (ट्रिनीटी) नाम क्यो? परमाणु विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया में २३५ भार वला यूरेनियम परमाणु,बेरियम और क्रिप्टन तत्वों में विघटित होता है। प्रति परमाणु ३ न्यूट्रान मुक्त होकर अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते है। कुछ द्रव्यमान ऊ र्जा में परिणित हो जाता है। आइंस्टाइन के सूत्र  ऊ र्जा = द्रव्यमान * (प्रकाश का वेग)२  {E=MC^2}  के अनुसार अपरिमित ऊ र्जा अर्थात उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते है। १८९३ में जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में थे,उन्होने वेद और गीता के कतिपय श्लोकों का अंग्रेजी अनुवाद किया था। यद्यपि परमाणु बम विस्फोटट कमेटी के अध्यक्ष ओपेन हाइमर का जन्म स्वामी जी की मृत्यु के बाद हुआ था किन्तु राबर्ट ने श्लोकों का अध्ययन किया था। वे वेद और गीता से बहुत प्रभावित हुए थे। वेदों के बारे में उनका