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सितंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राम एवं कृष्ण कथा एकसाथ राघवयादवीयम् ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ (Ram and Krishna Shlokaas together)

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कांचीपुरम के 17वीं शती के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ ‘राघवयादवीयम्’ एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। इसमें केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। उदाहरण के लिए देखें : अनुलोम : वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः । रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ 1 ॥ विलोम : सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः । यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ 1 ॥ अनुलोम : साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा । पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ 2 ॥ विलोम : वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः । राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ 2 ॥ क्या ऐसा कुछ अंग्रेजी में रचा जा सकता है ?? . . सम्पूर्ण स्तोत्र इस प्रकार है:- . राघवयादवीयम् . वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः । रामो र

ज्योतिषः सत्य या कल्पना (Indian Astrology fact or Fake)

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ज्योतिषः सत्य या कल्पना भविष्य जानने के अनेक तरीके हैं जैसे सामुद्रिक विज्ञान, अंक विज्ञान, ज्योतिष आदि। सामुद्रिक शास्त्र में चेहरा देखकर, शरीर में उपस्थित तिलों से, हाथ और पैर की रेखाओं से, शरीर के विभिन्न अंगों आदि से भविष्यवाणी की जाती है। सामुद्रिक शास्त्र में सर्वाधिक लोकप्रिय और वैज्ञानिक हस्त रेखा विज्ञान है। जो पाठक इस विषय का वैज्ञानिक पहलू विस्तार से अध्ययन करने में इच्छुक हो वह मेरी पुस्तक हस्त रेखाओं से रोग परीक्षण पढ़ सकते हैं। हमारा मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों का संचालन करता है। यह बात सिद्ध की जा चुकी है कि शरीर में किसी अव्यव का संचालन मस्तिष्क का कौन-सा भाग करता है। यदि मस्तिष्क का वह भाग किन्हीं कारणों से कार्य करना बंद कर दे तो उससे संबंधित भाग भी कार्य करना बंद कर देता है। मस्तिष्क के विभिन्न भागों का संबंध व्यक्ति की आकांक्षाओं, काम-प्रवृत्तियों, इच्छाओं आदि पर भी होता है। इसी कारण से शरीर-लक्षण विशेष रुप से हस्त रेखाओं द्वारा व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं का भी पता चल जाता है। सामुद्रिक शास्त्र का संबंध नक्षत्र, पृथ्वी तथा उसके निवासियों पर उनके प्रभाव

अष्ट सिद्धियों का रहस्य (Secret of Eight Siddhis)

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अष्ट सिद्धि का रहस्य सिद्धियाँ हजारों तरह की होती हैं उन्हें प्राप्त करने के तरीके अलग –अलग शास्त्रों में वर्णित हैं सिद्धियाँ गुण अनुसार सत् रज तम तीन तरह की होती हैं तमोगुण सिद्धि शीघ्र प्राप्त होती है रजोगुण सिद्धि काफी प्रयत्न से प्राप्त होती है और सतोगुणी सिद्धि ईश्वर की इच्छा से प्राप्त होती है यहाँ आठ सतोगुणी मुख्य सिद्धियाँ का वर्णन किया जा रहा है। पंच तत्वों की स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय और अर्थतत्व—ये पाँच अवस्थाएँ हैं। इन पर संयम करने से जगत् का निर्माण करने वाले पंचभूतों पर विजयलाभ प्राप्त होता है और प्रकृति वशीभूत हो जाती है। इससे अणिमा, लघिमा, महिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, ईशित्व—ये अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। जिसे कलयुग में हनुमानजी की कृपा से प्राप्त किया जा सकता हैं :- अणिमा सिद्धि अपने को सूक्ष्म बना लेने की क्षमता ही अणिमा है. यह सिद्धि वह सिद्धि है, जिससे युक्त होकर व्यक्ति सूक्ष्म रूप धारण कर एक प्रकार से दूसरों के लिए अदृश्य हो जाता है. इसके द्वारा आकार में लघु होकर एक अणु रुप में परिवर्तित हो सकता है. अणु एवं परमाणुओं की शक्ति से

खेचरी मुद्रा द्वारा अमृत पान (Secret of Khechari Mudra)

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खेचरी मुद्रा द्वारा अमृत पान खेचरी मुद्रा एक सरल किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है ।जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है तो इसी अवस्था में रहता है। इसमें जिह्वा को मोडकर तालू के ऊपरी हिस्से से सटाना होता है । निरंतर अभ्यास करते रहने से जिह्वा जब लम्बी हो जाती है । तब उसे नासिका रंध्रों में प्रवेश कराया जा सकता है । तब कपाल मार्ग एवं बिन्दुं विसर्ग से सम्बन्धित कुछ ग्रन्थियों में उद्दीपन होता है तो इसके परिणाम स्वरूप अमृत का स्त्राव आरम्भ होता है । उसी अमृत का स्त्राव होते वक्त एक विशेष प्रकार का अध्यात्मिक या मस्तीभरा अनुभव प्राप्त होता है । खेचरी मुद्रा को सिद्ध करने एवं अमृत के स्त्राव प्राप्ति हेतु आवश्यक उद्दीपन में कुछ वर्ष भी लग सकते हैं, किन्तु हो जाने पर ये जीवन के लिए एक बहुत बड़ी ही उपयोगी क्रिया है । जिव्हा का उलट कर तालु से लगाना और अनुभव करना कि इसके ऊपर सहस्रार अमृत कलश से रिस-रिस कर टपकने वाले सोमरस का जिव्हग्र भाग से पान किया जा रहा है । यही खेचरी मुद्रा है। तालु में मधुमक्खियों के छत्ते जैसे कोष्ठक होते हैं। सहस्रार को , सहस्र दल कमल की उपमा दी गई है। तालु सहस्र

मानव शरीर के पांच तत्त्व (Five elements of Human Body)

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मानव शरीर के पांच तत्त्व (Five elements of Human Body) नाड़ी शास्त्र के अनुसार, मानव शरीर में स्थित चक्र, जिनमें मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार चक्र विद्यमान है। इन चक्रों का संबंध वास्तु विषय के जल-तत्व, अग्नि-तत्व, वायु-तत्व, पृथ्वी-तत्व एवं आकाश-तत्व से संबंधित है। वास्तु में पृथक दिशा के लिये अलग-अलग तत्व दिये गये हैं, जैसे ईशान के लिये जल-तत्व, आग्नेय के लिये अग्नि-तत्व, वायव्य के लिये वायु-तत्व, नैऋत के लिये पृथ्वी-तत्व एवं ब्रह्म-स्थल के लिये आकाश-तत्व का महत्व है। जल-तत्व वास्तु के अनुसार भूमिगत पानी के स्त्राsत ईशान में ही होने चाहिये। जिससे सुबह के समय सूर्य से मिलने वाली अल्ट्राव्हायलेट किरणों से जल की शुद्धि होती है एवं यह सूर्य रश्मियां जीवन को स्वास्थप्रद रखती है। अग्नि-तत्व सूर्य को सृष्टि का संचालक कहा जाता है, क्योंकि सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा शक्ति का हमारे जीवन में अत्याधिक महत्व है। सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भवन की पूर्व, उत्तर, ईशान, पश्चिम-वायव्य एवं दक्षिण-आग्नेय दिशा से प्राप

योग की सिद्धियां (Siddhies of Yoga)

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योग की सिद्धियां  योग के सिद्धियों को फलित करके सर्ष्टि संचालन के सिधान्तों को जाना व प्रयोग किया जा सकता है किन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि किस योग से क्या घटित होता है इसी विषय पर संक्षिप्त लेख प्रस्तुत किया जा रहा है सभी योग के सिद्धि को प्राप्त करने की प्रक्रिया अलग-अलग है अतः प्रक्रिया पर पुनः विचार किया जायेगा योग के सिद्धियों की संख्या बहुत अधिक है, नीचे हम कुछ महत्वपूर्ण सिद्धियों का संक्षिप्त में वर्णन कर रहे हैं— (1) यह जगत संस्कारों (काल-समय) का परिणाम है और उन संस्कारों के क्रम में अदल-बदल होने से ही तरह-तरह के परिवर्तन होते रहते हैं। योगी इस तत्व को जान कर प्रत्येक वस्तु और घटना के ‘भूत’ तथा भविष्यत् का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। (2) शब्द, अर्थ और ज्ञान का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है इनके ‘संयम’ (धारणा, ध्यान और समाधि, इन तीनों साधन क्रियाओं के एकीकरण को ‘संयम’ कहते हैं) से ‘सब प्राणियों की वाणी’ का ज्ञान हो जाता है। (3) अति सूक्ष्म संस्कारों (काल-समय) को प्रत्यक्ष देख सकने के कारण योगी को किसी भी व्यक्ति के पूर्व जन्म या अगले जन्म का ज्ञान होता है। (4)अपने

मंत्र शक्ति (Power of Mantras)

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मंत्र क्या हैं     जिसके मनन करने से रक्षा होती है वह मंत्र है. मंत्र शब्दात्मक होते हैं. मंत्र सात्त्विक, शुद्ध और आलोकिक होते हैं. यह अन्तःआवरण हटाकर बुद्धि और मन को निर्मल करतें हैं.मन्त्रों द्वारा शक्ति का संचार होता है और उर्जा उत्पन्न होती है. आधुनिक विज्ञान भी मंत्रों की शक्ति को अनेक प्रयोगों से सिद्ध कर चुके हैं.समस्त संसार के प्रत्येक समुदाय, धर्म या संप्रदाय के अपने-अपने विशिष्ट मंत्र होतें हैं.अनेक संप्रदाय तो अपने विशिष्ट शक्तियों वाले मन्त्रों पर ही आधारित हैं. मन्त्रों की प्रकृति: मंत्र का सीधा सम्बन्ध ध्वनि से है इसलिए इसे ध्वनि -विज्ञान भी कहतें हैं. ध्वनि प्रकाश,ताप, अणु-शक्ति, विधुत-शक्ति की भांति एक प्रत्यक्ष शक्ति हैं . विज्ञान का अर्थ है सिद्धांतों का गणितीय होना. मन्त्रों में अमुक अक्षरों का एक विशिष्ट क्रमबद्ध, लयबद्ध और वृत्तात्मक क्रम होता है. इसकी निश्चित नियमबद्धता और निश्चित अपेक्षित परिणाम ही इसे वैज्ञानिक बनातें हैं. मंत्र में प्रयुक्त प्रत्येक शब्द का एक निश्चित भार,रूप,आकर,प्रारूप,शक्ति,गुणवत्ता और रंग होता है . मंत्र एक प्रकार की शक्ति हैं

शिवलिंग का रहस्य व वास्तविक अर्थ (Secret of Shiv-Linga and Actual Meaning)

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”शिवलिंग”’क्या है  शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है। शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है नाही शुरुवात | शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ..दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है| खैर….. जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं| उदाहरण के लिए……… यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो……. सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है| जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि | उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी | ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द

रामायण की सत्यता के वैज्ञानिक तथ्य (Scientific proofs of Ramayana was real history)

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कोणेश्वरम मंदिर रावण भगवान शिव की अराधना करता था और उसने भगवान शिव के लिए इस मंदिर की भी स्थापना करवाई. यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भगवान से ज़्यादा उनके भक्त रावण की आकृति बनी हुई है. इस मंदिर में बनी एक आकृति में रावण के दस सिरों को दिखाया गया है. कहा जाता है कि रावण के दस सिर थे और उसके दस सिर पर रखे दस मुकुट उसके दस जगहों के अधिपत्य को दर्शाता है. द्रोणागिरी पर्वत युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ ने मूर्छित कर दिया था और उनकी जान जा रही थी, तब हनुमान जी संजीवनी लेने द्रोणागिरी पर्वत गए थे. उन्हें संजीवनी की पहचान नहीं थी तो उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का निर्णय लिया. युद्ध के बाद उन्होंने द्रोणागिरी को यथास्थान पहुंचा दिया. उस पर्वत पर आज भी वो निशान मौजूद हैं जहां से हनुमान जी ने उसे तोड़ा था. पंचवटी नासिक के पास आज भी पंचवटी तपोवन है, जहां अयोध्या से वनवास काटने के लिए निकले भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण रुके थे. यहीं लक्ष्मण ने सूपनखा की नाक काटी थी. राम सेतु रामायण और भगवान राम के होने का ये सबसे बड़ा सबूत है. समुद्र के ऊपर श्री

श्री कृष्ण का जन्म तथा वंश(Birth and Dynasty of Lord Krishna)

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श्री कृष्ण जी का जन्म चन्द्रवंश मे हुआ जिसमे ७ वी पीढी मे राजा यदु हुए और राजा यदु की ४९ वी पीढी मे शिरोमणी श्री कृष्ण जी हुए राजा यदु की पीढी मे होने के कारण इनको यदुवंशी बोला गया , श्री कृष्ण जी के वंशज आज भाटी, चुडसमा, जाडेजा , जादौन, जादव और तवणी है जो मुख्यत: गुजरात, राजस्थान , महाराष्ट्र, और हरियाणा मे है --!!! श्री कृष्ण जी का छत्र और सिंहासन आज भी जैसलमेर के भाटी राजपरिवार के संग्राहलय मे सुरक्षित रखा हुआ है जो की श्री कृष्ण जी के वंशज है श्रीकृष्ण और अर्जुन ऐसे पौराणिक पात्र हैं, जिनके कारण कर्म की अहमियत को दुनिया ने जाना। श्रीकृष्ण द्वारा युद्धभूमि में निष्क्रिय हुए अर्जुन को कर्म के लिए प्रेरित करने के लिए दिए गए उपदेश भगवद्गीता के पावन ग्रंथ के रूप में जगत प्रसिद्ध है। भगवान् कृष्ण और अर्जुन दोनों ने कर्म और आचरण से न केवल अपने वंश का गौरव बढ़ाया बल्कि वह ऊंचाई दी, जिसे युग-युगान्तर तक भुलाया नहीं जा सकता। इसलिए यहां जानते हैं श्रीकृष्ण और अर्जुन की वंशावली से जुड़ी रोचक बातें - भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन दोनों चन्द्रवंशी थे। समय के बदलाव के साथ भगवान श्री कृष्ण यद