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सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शंख का भारतीय इतिहास (Conch Shell From Ancient India)

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समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में एक रत्न शंख है। माता लक्ष्मी के समान शंख भी सागर से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे माता लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में शंख को बहुत ही शुभ माना गया है, इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं। जन सामान्य में ऐसी धारणा है कि, जिस घर में शंख होता है उस घर में सुख-समृद्धि आती है। वास्तु विज्ञान भी इस तथ्य को मानता है कि शंख में ऐसी खूबियां है जो वास्तु संबंधी कई समस्याओं को दूर करके घर में सकारात्मक उर्जा को आकर्षित करता है जिससे घर में खुशहाली आती है। शंख की ध्वनि जहां तक पहुंचती हैं वहां तक की वायु शुद्ध और उर्जावान हो जाती है। वास्तु विज्ञान के अनुसार सोयी हुई भूमि भी नियमित शंखनाद से जग जाती है। भूमि के जागृत होने से रोग और कष्ट में कमी आती है तथा घर में रहने वाले लोग उन्नति की ओर बढते रहते हैं। भगवान की पूजा में शंख बजाने के पीछे भी यह उद्देश्य होता है कि आस-पास का वातावरण शुद्ध पवित्र रहे। शंख के प्रकार शंख मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं -दक्षिणावर्ती, मध्यावर्ती और वामावर्ती। इ

ऋषि वाग्बट्ट के सूत्र (Health Sutras of rishi Bagbatt)

सबसे पहले आप हमेशा ये बात याद रखें कि शरीर मे सारी बीमारियाँ वात-पित्त और कफ के बिगड़ने से ही होती हैं ! अब आप पूछेंगे ये वात-पित्त और कफ क्या होता है ??? बहुत ज्यादा गहराई मे जाने की जरूरत नहीं आप ऐसे समझे की सिर से लेकर छाती के बीच तक जितने रोग होते हैं वो सब कफ बिगड़ने के कारण होते हैं ! छाती के बीच से लेकर पेट और कमर के अंत तक जितने रोग होते हैं वो पित्त बिगड़ने के कारण होते हैं !और कमर से लेकर घुटने और पैरों के अंत तक जितने रोग होते हैं वो सब वात बिगड़ने के कारण होते हैं ! हमारे हाथ की कलाई मे ये वात-पित्त और कफ की तीन नाड़ियाँ होती हैं ! भारत मे ऐसे ऐसे नाड़ी विशेषज्ञ रहे हैं जो आपकी नाड़ी पकड़ कर ये बता दिया करते थे कि आपने एक सप्ताह पहले क्या खाया एक दिन पहले क्या खाया -दो पहले क्या खाया !! और नाड़ी पकड़ कर ही बता देते थे कि आपको क्या रोग है ! आजकल ऐसी बहुत ही कम मिलते हैं ! शायद आपके मन मे सवाल आए ये वात -पित्त कफ दिखने मे कैसे होते हैं ??? तो फिलहाल आप इतना जान लीजिये ! कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं ! आम भाषा मे नाक से निकलने वाली बलगम को कफ कहते हैं ! कफ थोड़ा

संस्कृत प्रणाली (Sanskrit System)

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परिचय  “भाषा” यह मानव सभ्यता के आविष्कारों मे सबसे अप्रतिम आविष्कार है । भाषा वह साधन है जो सोचने एवं भाव व्यक्तिकरण में अत्यावश्यक है; उसीके ज़रीये विश्वभर में महान कार्यों का संपादन होता रहा है । समस्त विश्व में जिस “विकास” की बातें हम सुनते रहते हैं, वह कभी संभव न होता यदि भाषा न होती ! और फिर भी इस महान आविष्कार को हम कितना सहज समज लेते हैं ! भाषाओं के इतिहास में भारत का योगदान महत्त्वपूर्ण है, क्यों कि उसने ऐसी भाषा का आविष्कार किया जो हर तरह से शास्त्रीय हो ! वह भाषा याने ‘संस्कृत’, जिसके बल पर भारतमाता और उसकी उत्तुंग संस्कृति मानार्ह बनी । वे कहते हैं.... श्री जवाहरलाल नेहरु ने कहा है, “यदि मुझे पूछा जाय कि भारत का सर्वश्रेष्ठ खज़ाना कौन-सा और उसकी सबसे बडी विरासत कौन-सी, तो बिना ज़िझक कहुंगा ‘संस्कृत भाषा, साहित्य, उसके भीतर रहा हुआ सब कुछ’ । यह सर्वोत्तम विरासत है और जब तक ये जियेंगी, जन-मानस को प्रभावित करेगी, तब तक भारत की न्यूनतम गरिमा का स्रोत बना रहेगा ।“ सर विलियम जॉन्स, जिन्हों ने सन 1786 में पाश्चात्य जगत में यह ऐलान कर दिया कि, “संस्कृत वह भाषा है जो ग्री

संस्कृत होगी नासा की मुख्य भाषा (Sanskrit & Artificial Intelligence — NASA Knowledge Representation in Sanskrit and Artificial Intelligence)

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In the past twenty years, much time, effort, and money has been expended on designing an unambiguous representation of natural languages to make them accessible to computer processing. These efforts have centered around creating schemata designed to parallel logical relations with relations expressed by the syntax and semantics of natural languages, which are clearly cumbersome and ambiguous in their function as vehicles for the transmission of logical data. Understandably, there is a widespread belief that natural languages are unsuitable for the transmission of many ideas that artificial languages can render with great precision and mathematical rigor. But this dichotomy, which has served as a premise underlying much work in the areas of linguistics and artificial intelligence, is a false one. There is at least one language, Sanskrit, which for the duration of almost 1,000 years was a living spoken language with a considerable literature of its own. Besides works of literary va

महावस्तु प्रोग्रामिंग (MahaVastu the ancient indian Programming system)

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Symbols are the formulator (sutradhar ) of the conscious and the sub-conscious mind. And man has had this innate knowledge from the very beginning, right with the creation of the world. According to linguists, development of language has taken place from symbols only. Symbols are an integral part of human life and mind, even today. The human sub-conscious mind understands only the language of symbols. The expansion of the sub-conscious mind is in two domains - first the sub-conscious mind of a human being and second the inner space of a building. The human mind evolves from the Space where he lives - the space inside the building. The philosophy of MahaVastu™ believes - Bhawna (emotion and intention) is the daughter of Bhavana (building). Emotion and intention are the driving forces of your life. CPU Analogy The analogy of computers serves best to understand the process of both the conscious and sub-conscious mind. Conscious mind is the monitor and sub-conscious mind the CPU

वेद क्या हैं? (What are Vedas)

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वास्तव में वेद किसे माना जाए, इस पर कई तरह के मत हैं. यहां हम इस भ्रम को दूर करने का प्रयास करेंगे. वैदिक साहित्य में सम्मिलित होने वाली पुस्तकें: १. वेद मंत्र संहिताएँ – ऋग्, यजुः, साम, अथर्व. २. प्रत्येक मंत्र संहिता के ब्राह्मण. ३. आरण्यक. ४. उपनिषद (असल में वेद, ब्राह्मण और आरण्यक का ही भाग). ५. उपवेद (प्रत्येक मंत्र संहिता का एक उपवेद). वास्तव में केवल मंत्र संहिताएँ ही वेद हैं. अन्य दूसरी पुस्तकें जैसे ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, ६ दर्शन, गीता इत्यादि ऋषियों द्वारा लिखी गई हैं. यह सब मनुष्यों की रचनाएँ हैं, परमात्मा की नहीं. अत: जहां तक यह सब वेद के अनुकूल हो, वहीं तक समझना और अपनाना चाहिए. प्रश्न. कात्यायन ऋषि के अनुसार तो ब्राह्मण भी ईश्वरीय हैं तब आप ब्राह्मणों को वेदों का भाग क्यों नहीं मानते? उत्तर.  १. ब्राहमण ग्रंथों को इतिहास, पुराण, कल्प, गाथा और नाराशंसी भी कहते हैं. इन में ऋषियों ने वेद मन्त्रों की व्याख्याएँ की हैं. इसलिए ये ऋषियों की रचनाएँ हैं ईश्वर की नहीं. २.शुक्ल यजुर्वेद के कात्यायन प्रतिज्ञा परिशिष्ट को छोड़कर (कई विद्वान कात्यायन को इस का ल

वेदों में परिवर्तन क्यों नहीं हो सकता? (Why Vedas are real)

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(युगों से वेदों की अपरिवर्तनशीलता कैसे सुनिश्चित है, यह जानने के लिए ध्यानपूर्वक इस लेख को पढ़ें | हम उन अनेक विद्वानों के आभारी  हैं, जिनके मूल स्त्रोत तो अज्ञात हैं परन्तु जिनके ज्ञान को इस लेख में प्रयुक्त किया गया है|) वेदों को उनकी आरंभिक अवस्था में कैसे संरक्षित किया गया, इस पर यहाँ कुछ विश्लेषणात्मक और निष्पक्ष सुझाव प्रस्तुत किये गए हैं | वेदों को  अपने विशुद्ध स्वरुप में बनाये रखने और उनमें किंचित भी फेर बदल की संभावना न  होने के कारणों को हम यहाँ विस्तार से देखेंगे | विश्व का अन्य कोई भी मूलग्रंथ संरक्षण की इतनी सुरक्षित पद्धति का दावा नहीं कर सकता है | हमारे पूर्वजों (ऋषियों )  ने विभिन्न प्रकार से वेद मन्त्रों को स्मरण करने की विधियाँ अविष्कृत कीं, जिनसे वेदमन्त्रों की स्वर-संगत और उच्चारण का रक्षण भी हुआ | वेदों  का  स्वर-रक्षण हमारे पूर्वजों ने नियमों के आधार पर यह सुनिश्चित किया कि मंत्र का गान करते हुए एक भी अक्षर, मात्रा या स्वर में फेरबदल न हो सके और मंत्र के गायन से पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके | उन्होंने शब्द के प्रत्येक अक्षर को उच्चारित करने में लगनेवाले समय को