संदेश

जून, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क़ुतुब मीनार तथा ध्रुव स्तंभ का रहस्य (The Secret of Qutab Minar and Dhruv Stambha)

चित्र
1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया ,तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था 1206 में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई तब वह गद्दी पर बैठा ,अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए I 1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार ,कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई I अब कुछ प्रश्न ....... अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ? क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और 1210 में भी मरने के पहले भी वह लाहौर में था ?......शायद नहीं I कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक

Mystical Technologies of Ancient India (प्राचीन भारत का रहस्यमयी विज्ञान )

चित्र
सभी प्रारंभिक सभ्यताओं में भौतिक विज्ञानों का अध्ययन न तो परिभाषित था और न ही ज्ञान की अन्य शाखाओं से प्रथक था। प्रारंभ में जो नवीनशिल्प और कार्य व्यवहारतः विकसित हुए जिनमें वैज्ञानिक सिद्धांतों के प्रयोग की जरूरत थी परंतु उनसे अलग हटकर विज्ञान के सिद्धांतों का स्वतंत्रा अध्ययन करने के प्रयास नहीं के बराबर हुए। अधिकांश मामलों में जो तकनीकी अनुसंधान हुए उनमें निहित वैज्ञानिक सिद्धांतों की कोई जानकारी नहीं थी और ये अनुसंधान अटकलपच्चू विधि और पूर्व अनुभव के जरिए हुए। कभी-कभी विज्ञान के प्रति एक अस्पष्ट जागरूकता आती थी मगर तकनीक के व्यवहारिक पक्ष और उनकी व्यवहारिक सफलता पर ही ध्यान अधिक केंद्रित था न कि इस बात पर कि कैसे और क्यों कभी सफलता मिलती थी और कभी क्यों नहीं मिलती थी ? भारत में रसायन के प्रारंभिक प्रयोग, औषधि, धातुकर्म, निर्माणशिल्प जैसे सीमेंट और रंगों के उत्पादन, वस्त्रा उत्पादन और रंगाई के संदर्भ में हुए। रासायनिक प्रक्रियाओं को समझने के दौरान पदार्थ के मूल तत्वों की व्याख्या करने में भी रुचि उत्पन्न हुई कि वे किन वस्तुओं के मेल से बने और किस प्रकार उनके आपसी मेल से नई वस्तुय

ancient Vimana (ऐतिहासिक विमान )

चित्र
पक्षियों को आसमान में स्वछंद उड़ते देख सदियों से मनुष्य के मन में भी आसमान छूने की तमन्ना रही है। 1903 में राइट बन्धुओं ने किटी हॉक बनाकर इस सपने को सच कर दिखाया पर सवाल यह है कि क्या इससे पहले भी मनुष्य के आसमान में उड़ने की कोई कोशिश सफल हुई है? पहले परवाज : 1780 में दो फ्रेंच नागरिकों ने पेरिस में हवा से हलके गुब्बारे में हवा में कुछ दूर तक उड़ान भरी थी, पर अब कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कई सभ्यताओं ने इससे कहीं पहले उड़ने की तकनीक विकसित कर ली थी। वर्षों की खोज के बाद मिले पुरातात्विक सबूत भी इस ओर इशारा करते हैं। प्राचीन युग में भी बेबीलोन, मिस्र तथा चीनी सभ्यता में उड़नखटोलों या उड़ने वाले यांत्रिक उपकरणों की कहानियाँ प्रचलित हैं। इन सभ्यताओं के पौराणिक ग्रंथों में पौराणिक नायकों तथा देवताओं के आकाश में उड़ने के कई किस्से मिलते हैं। भारतीय पौराणिक प्रमाण : भारतीय हिंदू पौराणिक और वैदिक साहित्य में ऐसे कई उल्लेख मिलते हैं जिनमें ऋषि-मुनि तथा देवपुरुष सशरीर अथवा किसी यांत्रिक उपकरण के माध्यम से उड़कर अपनी यात्रा पूरी करते थे। स्कंद पुराण के खंड तीन अध्याय 23 में उल्लेख म

माथे पर तिलक का रहस्य (Mystery of Tilak on forehead)

चित्र
शायद भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है। मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाना उपयोगी माना गया है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में तिलक लगाकर, विशेषकर स्त्रियों में, देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है। स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। तिलक का महत्व हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामन

कैलाश पर्वत का रहस्य (Secret of Kailash Mountain)

चित्र
कैलाश पर्वत .......दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत, अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डारक एक्सिस मुंडी को ब्रह्मांड का केंद्र, दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव के रूप में, यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं रूसिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया है। भूगोल और पौराणिक रूप से कैलाश पर्वत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है। और यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों जैसे माउन्ट एवरेस्ट के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता पर इसकी भव्यता ऊंचाई में नहीं, लेकिन अपनी विशिष्ट आकार में निहित है। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के चार दिक् बिन्दुओं के सामान है और एकान्त स्थान पर स्थित है जहाँ कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। कैलाश पर्वत पर चड़ना निषिद्ध है पर 11 सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस

शिव के 19 अवतार (19 avatar of Lord Shiva)

चित्र
शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, 1- पिप्पलाद अवतार :- मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता  दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। शाप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।  शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था। पिप्पलादेति तन्नाम चक्रे ब्रह्मा प्रसन्नधी:। -शिवपुराण शतरुद्रसंहिता 24/61 अर्थात ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर सुवर्चा के पुत्र का नाम पिप्पलाद रखा। 2- नंदी अवतार :- भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व

सरस्वती नदी का रहस्य (Secret of Saraswati River)

चित्र
सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दु ग्रंथों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक श्लोक (१०.७५) में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहती हुए बताया गया है। उत्तर वैदिक ग्रंथों जैसे ताण्डय और जैमिनिय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सुखा हुआ बताया गया है, महाभारत भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में विनाशन नामक जगह में अदृश्य होने का वर्णन करता है। महाभारत में सरस्वती नदी को प्लक्षवती नदी, वेद स्मृति, वेदवती आदि नामों से भी बताया गया है. ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्द‍र्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजुदा सुखि हुई घग्गर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो ५००० - ३००० ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी। उस समय सतलुज तथा यमुना की कुछ धाराए सरस्वती नदी में आकर मिलती थी। इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियाँ दृष्टावदी और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियाँ थी,लगभग १९०० ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव की वजह से यमुना, सतलुज ने अपना र

विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय (World's first International University)

चित्र
वर्तमान पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक व िषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयु

विष्णु के दस अवतार कौन से है (what are Ten Avatars of God Vishnu)

चित्र
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानमं सृजाम्यहम्।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (श्रीमद्भाग्वद् गीता 4/7-8) हिन्दूओं का विशवास है कि सृष्टि में सभी प्राणी पूर्वनिश्चित धर्मानुसार अपने अपने कार्य करते  रहते हैं और जब कभी धर्म की हानि की होती है तो सृष्टिकर्ता धर्म की पुनः स्थापना करने के लिये धरती पर अवतार लेते हैं। मुख्यतः आज तक सृष्टि पालक भगवान विष्णु नौ बार धरती पर अवतरित हो चुके हैं और दसवीं बार अभी हों गे। सभी अवतारों की कथायें पुराणों में विस्तार पूर्वक संकलित हैं। उन का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैः – मत्स्य अवतार – एक बार राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी के तट पर तर्पण कर रहे थे तो एक छोटी मछली उन की अंजली में आकर विनती करने लगी कि वह उसे बचा लें। राजा सत्यव्रत ने एक पात्र में जल भर कर उस मछली को सुरक्षित कर दिया किन्तु शीघ्र ही वह मछली पात्र से भी बड़ी हो गयी। राजा ने मछली को क्रमशः तालाब, नदी और अंत में सागर के अन्दर रखा पर हर बार वह पहले से भी बड़े शरीर में परिवर्तित होती गयी। अंत में मछली रूप

सती प्रथा का इतिहास (Origin of Sati Pratha)

चित्र
सती प्रथा हमारे सभ्य मानवीय इतिहास की कुछेक सबसे बड़ी कुरीतियों मे से एक है ..... जिसे एक कुरीति से ज्यादा हमारे समाज पर कलंक कहना अधिक उपर्युक्त होगा...! उस से भी ज्यादा तो दुखद यह है कि..... इस संबंध मे समुचित जानकारी का अभाव .....आज के हिन्दू नौजवानों को हमेशा ""बचाव मुद्रा"" मे आने को विवश कर देता है ॰ आश्चर्यजनक रूप से..... हमारे समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा ""सतीप्रथा"" को हिन्दू समाज के एक बड़ी कुरीति के रूप मे प्रस्तुत किया गया और यह प्रचारित किया गया कि..... ""सतीप्रथा"" पुरातन काल से ही हिन्दू समाज का हिस्सा रहा है....! परंतु ..... कोई भी मनहूस बुद्धिजीवी आजतक यह बताने मे असफल रहा है कि...... दुनिया की पहली सती कौन थी और.... उसने सर्वप्रथम कब आत्मदाह किया था...????? साथ ही.... ऐसे बुद्धिजीवियों के मुंह मे उस समय "मेंढक" चला जाता है .... जब उन्हे पूछा जाता है कि.... अगर ""सतीप्रथा"" पुरातन काल से ही हमारे हिन्दू समाज का हिस्सा रहा है तो...... हमारे धार्मिक ग्रन्थों .... खासकर व