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जून, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महाभारत की 10 अनसुनी कहानियाँ (10 untold stories oh Mahabharat)

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महाभारत की कहानियाँ हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, टेलीविज़न पर देखते आ रहे है फिर भी हम सब महाभारत के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते है क्योकि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत बहुत ही बड़ा ग्रंथ है, इसमें एक लाख श्लोक है। आज हम आपको महाभारत की कुछ ऐसी ही कहानियां पढ़ाएंगे  जो आपने शायद पहले कभी नहीं पढ़ी होगी। तो आइये शुरुआत करते है मामा शकुनि से।  हम सब मानते है की शकुनि कौरवों का सबसे बड़ा हितैषी था जबकि है इसका बिलकुल विपरीत। शकुनि ही कौरवों के विनाश का सबसे बड़ा कारण था, उसने ही कौरवों का वंश समाप्त करने के लिए महाभारत के युद्ध की पृष्टभूमि तैयार की थी।  पर उसने ऐसा किया क्यों ? इसका उत्तर जानने के लिए हमे ध्रतराष्ट्र और गांधारी के विवाह से कथा प्रारम्भ करनी पड़ेगी। शकुनि ही थे कौरवों के विनाश का कारण : ध्रतराष्ट्र का विवाह गांधार देश की गांधारी के साथ हुआ था। गंधारी की कुंडली मैं दोष होने की वजह से एक साधु के कहे अनुसार उसका विवाह पहले एक बकरे के साथ किया गया था। बाद मैं उस बकरे की बलि दे दी गयी थी। यह बात गांधारी के विवाह के समय छुपाई गयी थी. जब ध्रतराष्ट्र को इस बात का पता चला तो उसने ग

मोक्ष प्राप्ति के २० आचरण (20 rules for salvation)

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1. अमानित्वं: नम्रता, वाणी एवं व्यवहार से विनम्र होना 2.अदम्भितम: (श्रेष्ट होने पर भी) श्रेष्ठता का अभिमान न रखना 3.अहिंसा: किसी जीव कों पीड़ा न देना 4.क्षान्ति: क्षमाभाव, अपमान की अवस्था में भी क्षमा करने के लिए तैयार रहना 5. आर्जव: मन, वाणी एवं व्यव्हार में सरलता 6.आचार्योपासना: सच्चे गुरु अथवा अध्यात्मिक आचार्य का आदर एवं निस्वार्थ सेवा 7. शौच: आतंरिक एवं बाह्य शुद्धता सांडिल्य उपनिषद में “सौचं च द्विविधं” दो प्रकार की शुद्धता का वर्णन करता है| वाह्य शुद्धता में हमे अपने शरीर कों हर प्रकार से शुद्ध रखना चाहिए| आतंरिक शुद्धता मस्तिस्क एवं मन नो शुद्ध करके प्राप्त होती है| 8. स्थैर्य: धर्म के मार्ग में सदा स्थिर रहना और विचलित न होना | 9.आत्मविनिग्रह: इन्द्रियों वश में करके अंतःकरण कों शुद्ध करना(अर्थात लोभ, मोह, क्रोध, काम का त्याग करके आत्मज्ञान कों प्राप्त होना) 10. वैराग्य इन्द्रियार्थ: लोक परलोक के सम्पूर्ण भोगों में आसक्ति न रखना | 11. अहंकारहीनता: झूटे भौतिक उपलब्धियों का अहंकार न रखना | 12. दुःखदोषानुदर्शनम्‌: जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दुःख में

Welcome to the world of IndraJaala

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Indra's net (also called Indra's jewels or Indra's pearls- Indrajaal in Sanskrit) is a metaphor used to illustrate the concepts of emptiness.The concept of "Indra's net" has its philosophical roots in early proto-forms of Sāṃkhya in Buddhism. The earliest reference to a net belonging to Indra is in the Atharva Veda (c. 1000 BCE) Verse 8.8.6. says: Vast indeed is the tactical net of great Indra, mighty of action and tempestuous of great speed. By that net, O Indra, pounce upon all the enemies so that none of the enemies may escape the arrest and punishment. || And verse 8.8.8. says: This great world is the power net of mighty Indra, greater than the great. By that Indra-net of boundless reach, I hold all those enemies with the dark cover of vision, mind and senses. || The net was one of the weapons of the sky-god Indra, used to snare and entangle enemies.The net also signifies magic or illusion. According to Teun Goudriaan, Indra is conceived in the R

महिलाओं के मासिक धर्म का कारण भागवत पुराण के अनुसार (Reason of female menstrual cycle from bhagwat puraan)

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क्या आप जानते हैं कि महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म का पुराणों में उल्लेख शामिल है? उन्हें मासिक धर्म क्यों होता है इस पर एक पौराणिक कथा भी मौजूद है जो इन्द्र देव से सम्बन्धित है। भागवत पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार ‘बृहस्पति’ जो देवताओं के गुरु थे, वे इन्द्र देव से काफी नाराज़ हो गए। इस के चलते असुरों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया और इन्द्र को अपनी गद्दी छोड़ कर भागना पड़ा। असुरों से खुद को बचाते हुए वे सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे और उनसे मदद मांगने लगे। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि उन्हें एक ब्रह्म-ज्ञानी की सेवा करनी चाहिए, यदि वह प्रसन्न हो जाए तभी उन्हें उनकी गद्दी वापस प्राप्त होगी। आज्ञानुसार इन्द्र देव एक ब्रह्म-ज्ञानी की सेवा में लग गए। लेकिन वे इस बात से अनजान थे कि उस ज्ञानी की माता एक असुर थी इसलिए उसके मन में असुरों के लिए एक विशेष स्थान था। इन्द्र देव द्वारा अर्पित की गई सारी हवन की सामग्री जो देवताओं को चढ़ाई जाती है, वह ज्ञानी उसे असुरों को चढ़ा रहा था। इससे उनकी सारी सेवा भंग हो रही थी। जब इन्द्र देव को सब पता लगा तो वे बेहद क्रोधित हो

स्वप्न फल जानिए 251 सपनों के फल(Meaning of Dreams in Indian Jyotishshastra)

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स्वप्न ज्योतिष के अनुसार नींद में दिखाई देने वाले हर सपने का एक ख़ास संकेत होता है, एक ख़ास फल होता है।  यहाँ हम आपको 251 सपनो के स्वपन ज्योतिष के अनुसार संभावित फल बता रहे है। सपने                                     फल 1- आंखों में काजल लगाना- शारीरिक कष्ट होना 2- स्वयं के कटे हाथ देखना- किसी निकट परिजन की मृत्यु 3- सूखा हुआ बगीचा देखना- कष्टों की प्राप्ति 4- मोटा बैल देखना- अनाज सस्ता होगा 5- पतला बैल देखना - अनाज महंगा होगा 6- भेडिय़ा देखना- दुश्मन से भय 7- राजनेता की मृत्यु देखना- देश में समस्या होना 8- पहाड़ हिलते हुए देखना- किसी बीमारी का प्रकोप होना 9- पूरी खाना- प्रसन्नता का समाचार मिलना 10- तांबा देखना- गुप्त रहस्य पता लगना 11- पलंग पर सोना- गौरव की प्राप्ति 12- थूक देखना- परेशानी में पडऩा 13- हरा-भरा जंगल देखना- प्रसन्नता मिलेगी 14- स्वयं को उड़ते हुए देखना- किसी मुसीबत से छुटकारा 15- छोटा जूता पहनना- किसी स्त्री से झगड़ा 16- स्त्री से मैथुन करना- धन की प्राप्ति 17- किसी से लड़ाई करना- प्रसन्नता प्राप्त होना 18- लड़ाई में मारे जाना- राज

गरुड़ पुराण- योग्य संतान पाने का सही समय (Perfect time to give birth a child)

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सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान उत्तम गुणों से पूर्ण हो और उसमें वह सभी गुण हों जो आगे जाकर उस संतान के उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्यवश हर माता-पिता का ये सपना पूरा नहीं हो पाता। गरूड पुराण में उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु ने बहुत सी गोपनीय बातें बताई हैं। इस पुराण में ये भी लिखा है कि पति को किस समय पत्नी से दूर रहना चाहिए और उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए किस समय गर्भाधान करना चाहिए। ऋतुकाल में चार दिन तक स्त्री का त्याग करें क्योंकि चौथे दिन स्त्रियां स्नानकर शुद्ध होती हैं और सात दिन में पितृदेव व व्रतार्चन (पूजन आदि करने) योग्य होती है। सात दिन के मध्य में जो गर्भाधान होता है व अच्छा नहीं माना जाता। गरूड पुराण के अनुसार आठ रात के बाद पत्नी मिलन से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। युग्म दिन ( जैसे- अष्टमी, दशमी, द्वादशी आदि) में पुत्र व अयुग्म (नवमी, एकादशी, त्रयोदशी आदि) में कन्या उत्पन्न होती है इसलिए सात दिन छोड़कर गर्भाधान करें। सोलह रात तक स्त्रियों का सामान्यत: ऋतुकाल रहता है, उसमें भी चौदहवीं रात में जो गर्भाधान होता है,