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अगस्त, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शिवलिंग का मतलब (Meaning of Shivling)

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क्या आप जानते हैं कि ....... शिवलिंग का मतलब क्या होता है ... और, शिवलिंग किस चीज का प्रतिनिधित्व करता है......?????? दरअसल..... कुछ मूर्ख और कुढ़मगज किस्म के प्राणियों ने ..... परम पवित्र शिवलिंग को जननांग समझ कर ..... पता नही क्या-क्या और कपोल कल्पित अवधारणाएं फैला रखी हैं परन्तु.... शिवलिंग .......... वातावरण सहित घूमती धरती तथा ...... सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है। The whole universe rotates through a shaft called ........ shiva lingam. दरअसल....... ये गलतफहमी..... भाषा के रूपांतरण ..... और, मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने ..... तथा, अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ ..... हो सकता है...! खैर..... जैसा कि.... हम सभी जानते है कि..... एक ही शब्द के .. विभिन्न भाषाओँ में ...... अलग-अलग अर्थ निकलते हैं....! उदाहरण के लिए......... यदि हम हिंदी के एक शब्द ""सूत्र''' को ही ले लें तो....... सूत्र मतलब......... डोरी/धागा........गणितीय सूत्र..........क

पंचमुखी महादेव (Panchmukhi Mahadev)

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देवाधिदेव महादेव के पाँच मुखों का क्या रहस्य है......????? पंचमुखी महादेव के दर्शन काफी दुर्लभ है क्योंकि... अधिकांशतः महादेव की शिवलिंग रूप में ही पूजा की जाती है....! परन्तु .... देवाधिदेव महादेव के प्रतीकात्मक रूप से .......पाँच मुख हैं.. तथा, दुर्वासा ऋषि द्वारा रचित .....शैवागम शास्त्रों में इनकी विस्तृत व्याख्या है.......! दरअसल.... महादेव के ये पांचो मुख..... हमारी प्रकृति के मूल पाँच तत्वों के प्रतीक हैं...... यथा.... सद्योजात (जल).....वामदेव (वायु)....... अघोर (आकाश).....तत्पुरुष (अग्नि)..... एवं ईशान (पृथ्वी) ....! और... अब यह वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध है कि.... प्रकृति इन्ही पांच मूल तत्वों से मिलकर बनी है....! साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह है कि..... व्यवहारिक रूप से योग साधना करने वाले सभी योगियों को पंचमुखी महादेव के दर्शन....... गहन ध्यान में एक श्वेत रंग के पंचमुखी नक्षत्र के रूप में होते हैं..... जो , एक नीले आवरण से घिरा होता है...... तथा, यह नीला आवरण भी एक सुनहरे प्रकाश पुंज से घिरा होता है.....| इस तरह.... ध्यान साधना में योगी पहले उस सुनहरे आवरण

Name of kauravas and pandavas

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महाभारत हमारे हिन्दू सनातन धर्म के महाकाव्यों में से एक है..... जो हमें यह सीख देता है कि.... बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो.... विजय हमेशा अच्छाई की ही होती है...! और, महाभारत का नाम आते ही.... पांच पांडव और सौ कौरवों का ख्याल हमारे दिमाग में कौंध जाता है.... ! परन्तु, हम में से बहुत कम लोगों को ही .. पांचो पांडव और सौ कौरवों का नाम ठीक से पता होगा....! इसीलिए..... आयें, आज हम पांचो पांडव और सौ कौरवों के नाम को जानते हैं....! पाँच पाण्डव तथा सौ कौरवों के नाम ये थे .... पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं - 1. युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन 4. नकुल 5. सहदेव ( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है ) यहाँ ध्यान रखें कि... पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माता कुन्ती थीं ......तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी । वहीँ .... धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र..... कौरव कहलाए जिनके नाम हैं - 1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह 4. दुःशल 5. जलसंघ 6. सम 7. सह

भारत को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है (why India is Jambu Dweep)

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क्या आप जानते हैं कि..... हमारे देश का नाम ............... “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....????? साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन भारत का नाम......"जम्बूदीप" था....????? परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे भारत को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....?????? दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........???? क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...! लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......। आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....। परन्तु

WHY TO VISIT TEMPLES

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Scientific Reason : There are thousands of temples all over India in different size, shape and locations but not all of them are considered to be built the Vedic way. Generally, a temple should be located at a place where earth's magnetic wave path passes through densely. It can be in the outskirts of a town/village or city, or in middle of the dwelling place, or on a hilltop. The essence of visiting a temple is discussed here. Now, these temples are located strategically at a place where the positive energy is abundantly available from the magnetic and electric wave distributions of north/south pole thrust. The main idol is placed in the core center of the temple, known as "*Garbhagriha*" or *Moolasthanam*. In fact, the temple structure is built after the idol has been placed. This *Moolasthanam* is where earth’s magnetic waves are found to be maximum. We know that there are some copper plates, inscribed with Vedic scripts, buried beneath the Main Idol. What ar

नया अविष्कार

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वेद ज्ञान को आधार मान कर न्यूलैंड के एक वैज्ञानिक स्टेन क्रो ने एक डिवाइस विकसित कर लिया। ध्वनि पर आधारित इस डिवाइस से मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाती है। इस बिजली की आवश्यकता नहीं होती है। भारत के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओमप्रकाश पांडे ने वेदों में निहित ज्ञान पर प्रकाश डालते हुए दैनिक भास्कर प्रतिनिधि से बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस डिवाइस का नाम भी ओम डिवाइस रखा गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को अपौरुष भाषा इसलिए कहा जाता है कि इसकी रचना ब्रह्मांड की ध्वनियों से हुई है। उन्होंने बताया कि गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारों और से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती है तो उनका पृथ्वी के आठ बसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत

गायत्री मंत्र का वर्णं

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ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् गायत्री मंत्र संक्षेप में गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता) को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है. इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है. हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं हे संसार के विधाता हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं ॐ = प्रणव भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल वरेण्यं = सबसे उत्तम भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला देवस्य

भीम के पुत्र घटोत्कच का कंकाल

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कयास लगाये जा रहें है की यह भीम के पुत्र घटोत्कच का कंकाल हो सकता हैं घटोत्कच के बारे में कुछ भी कहने से पहले यह जान ले की उसे भगवान् श्री कृष्ण ने युद्ध लड़ने से माना कर दिया था क्यूँ की वो बहुत ही ज़यादा शक्तिशाली था घटोत्कच के विषय में जानने के लिए महाभारत पढ़ें या यू तुबे पर महाभारत सिरिअल के विडियो देखें यह अमर चित्र कथा में पढ़ें .. आप को और भी जानकारिय मिल जाएँगी .. !! इस विषय में अधिक जानकारी के लिए गूगल पर सर्च कर के देख सकते है। आपको बहुत सी जानकारी मिल जाएगी ..

ॐ , Cymatics तथा श्री यन्त्र

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सन १९९० में Air National Guarde पायलट Bill Miller द्वारा ऑरेगोन शुष्क झील में निचे देखा तो उन्हें श्री यन्त्र का डिजाईन दिखा। जिसकी रेखाएं 13 मील तक फैली थी हर एक लाइन की चौड़ाई 10 चौड़ी थी तथा 3 इंच गहरी थी। उस जगह पर मनुष्य निर्मित होने कोई सबूत नहीं मिला यह किसी द्वारा बनाया नहीं गया बल्कि प्राकृतिक बना है। सन १९९० में Air National Guarde पायलट Bill Miller द्वारा ऑरेगोन शुष्क झील में निचे देखा तो उन्हें श्री यन्त्र का डिजाईन दिखा। जिसकी रेखाएं 13 मील तक फैली थी हर एक लाइन की चौड़ाई 10 चौड़ी थी तथा 3 इंच गहरी थी। उस जगह पर मनुष्य निर्मित होने कोई सबूत नहीं मिला यह किसी द्वारा बनाया नहीं गया बल्कि प्राकृतिक बना है। http://cropcircleconnector.com/ilyes/ilyes9.html http://www.labyrinthina.com/sriyantra.htm दोस्तों सर्वप्रथम समझते है की Cymatics क्या होता है ? ध्वनी से उत्पन्न तरंगों को मूरत रूप देना (making sound visible) Cymatics Science कहलाता है | उदहारण के लिए यदि जल से भरे पात्र की दीवार पर चम्मच आदि से चोट करने पर जल में तरंगे प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती है परन्तु यदि प

सिर्फ स्नान नहीं, विज्ञान है मकर सक्रान्ति:: जाने इसका महत्व हैं

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मकर सक्रान्ति का पर्व आया और चला गया। नदी में एक डुबकी लगाई; खिचड़ी खाई और आगे बढ़ गये। क्या हमारे त्यौहारों का इतना ही मायने है अथवा इनका भी कोई विज्ञान है? मकर सक्रान्ति सूर्य पर्व है या नदी पर्व? हर सूर्य पर्व में नदी स्नान की बाध्यता है और हर नदी पर्व में सूर्य को अर्घ्य की। क्यों? कुल मिलाकर माघ का महीना, सूर्य, मकर राशि, संगम का तट, नदी का स्नान और खिचड़ी खाना-ये पांच मुख्य बातें मकर सक्रान्ति की तिथि से जुड़ी हैं। इनके विज्ञान उल्लेख हमारे उन पुरातन ग्रंथों में दर्ज है, जिन्हें हमने अंधकार के पोथे कहकर खोलने से ही परहेज मान लिया है। क्या है इनका विज्ञान? मकर सक्रान्ति माघ के महीने में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व है। आइये! जानते हैं कि क्या है सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का मतलब? सभी जानते हैं कि इस ब्रह्मांड में दो तरह के पिण्ड हैं। ऑक्सीजन प्रधान और कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान। ऑक्सीजन प्रधान पिण्ड ‘जीवनवर्धक’ होते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान ‘जीवनसंहारक’। बृहस्पति ग्रह जीवनवर्धक तत्वों का सर्वश्रेष्ठ स्रोत है। शुक्र सौम्य होने के बावजूद आसुरी है। रवि यानी सूर्य

प्रभावशाली अस्त्र विद्या (Advanced Weaponology)

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चतुर्दिश अस्त्र संरचना: विभिन्न ग्रंथों में जगह जगह पर बहुत सारे अस्त्र-सस्त्र का वर्णन आता है जैसे: इन्द्र अस्त्र आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र नाग पाशा, वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र नारायणा अस्त्र, वैष्णवअस्त्र, पाशुपत अस्त्र ब्रह्मास्त्र ऐसा अस्त्र है जो अचूक होता है। ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है। चतुर्दिश अस्त्र: संरचना: १.तीर (बाण)के अग्र सिरे पे ज्वलनशील रसायन लगा होता है, और एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पश्च सिरे पे बंधे बारूद से होता है. २.तीर की नोक से थोडा पीछे चार छोटे तीर लगे होते हैं उनके भी पश्च सिरे पे बारूद लगा होता है. कार्य-प्रणाली: १.जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है, वायु के साथ घर्षण के कारण,तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है. २.उस से जुड़े सूत्र की

क़ुतुब मीनार का सच

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1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया ,तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था 1206 में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई tab वह गद्दी पर बैठा अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए 1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार , कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई अब कुछ प्रश्न ....... अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ? क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और 1210 में भी मरने के पहले भी वह लाहौर में था ?...... शायद नहीं कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया यह भी कि कुतुबुद्दीन ने स

हिन्दू खगोलीय विज्ञानं

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हिन्दू बिना आधुनिक विज्ञानं का सहारा लिए यह बता सकते हैं कब ओर कैसे पूर्णिमा , अमावस्या, सूर्यग्रहण आदि घटनाये घटित होंगी. 31-8-2012 को पूर्णिमा है आयो देखें सिर्फ हिन्दू खगोलीय विज्ञानं के सहारे हम यह कैसे जान पाते हैं हिन्दू धरम के सूक्षम खगोलीय विज्ञानं का सक्षिप्त परिचय हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रहमांड 360 डिग्री गोल है और आधुनिक विज्ञानं भी यही मानता है http://www.astrolog.swifthost.net/astrology_book_script/astrology_degrees.हटमल इन 360 डिग्री के ब्रहमांड को ऋषिओं ने 12 रशिओं में बांटा है जो कि क्रमश : इस प्रकार हैं मेष, वृष,मिथुन,कर्क ,सिंह ,कन्या,तुला वृश्चिक ,धनु ,मकर ,कुंभ ,मीन और प्रत्येक राशी ३० डिग्री की होती है इस प्रकार १२ *३० =३६० आगे इन रशिओं को २७ नक्षत्रों में बांटा गया है और एक नक्षत्र का माण १३.३३ डिग्री है इस प्रकार १३.३३ * २७ = ३६० डिग्री. इसके अलावा ७ मुख्या ग्रह हैं जिनमे से सूर्य और चन्द्र को हम अपनी आँखों से आसानी से देख सकते हैं | अब देखतें हैं यह विज्ञानं कितनी सटीकता से काम करता है सभी ग्रह इश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित गति द्वारा इ

प्राचीन भारत में (वर्तमान पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित) चिकित्सा एवं सर्जरी प्रौद्योगिकी

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प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति ? कई लोग प्लास्टिक सर्जरी को अपेक्षाकृत एक नई विधा के रूप में मानते हैं। प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति की जड़ें भारत से सिंधु नदी सभ्यता से 4000 से अधिक साल से जुड़ी हैं। इस सभ्यता से जुड़े श्लोकों(भजनों) को 3000 और 1000 ई॰पू॰ के बीच संस्कृत भाषा में वेदों के रूप में संकलित किया गया है, जो हिंदू धर्म की सबसे पुरानी पवित्र पुस्तकों में हैं। इस युग को भारतीय इतिहास में वैदिक काल (5000 साल ईसा पूर्व) के रूप में जाना जाता है, जिस अवधि के दौरान चारों वेदों, अर्थात् ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद को संकलित किया गया। सभी चारों वेद श्लोक(भजन), छंद, मंत्र के रूप में संस्कृत भाषा संकलित किए गए हैं। 'सुश्रुत संहिता' अथर्ववेद का एक हिस्सा माना जाता है।  'सुश्रुत संहिता' (सुश्रुत संग्रह), जो भारतीय चिकित्सा में सर्जरी की प्राचीन परंपरा का वर्णन करता है, को भारतीय चिकित्सा साहित्य के सबसे शानदार रत्नों में से एक के रूप में माना जाता है। इस ग्रंथ में महान प्राचीन सर्जन 'सुश्रुत' की शिक्षाओं और अभ्यास का विस्तृत विवरण है, जो आज भी

भारत का स्वर्णिम अतीत

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आज से लगभग 100-150 साल से शुरू करके पिछले हज़ार साल का इतिहास के कुछ तथ्य। भारत के इतिहास/ अतीत पर दुनिया भर के 200 से ज्यादा विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत शोध किया है। इनमें से कुछ विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूँगा। ये सारे विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञ भारत से बाहर के हैं, कुछ अंग्रेज़ हैं, कुछ स्कॉटिश हैं, कुछ अमेरिकन हैं, कुछ फ्रेंच हैं, कुछ जर्मन हैं। ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ कहा और लिखा है उसकी जानकारी मुझे देनी है। 1. सबसे पहले एक अंग्रेज़ जिसका नाम है 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले', ये भारत में आया और करीब 17 साल रहा। इन 17 वर्षों में उसने भारत का काफी प्रवास किया, पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत में गया। अपने 17 साल के प्रवास के बाद वो इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट 'हाउस ऑफ कोमेन्स' में उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद एक लंबा भाषण दिया। उसने कहा था :: “ I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is

राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़िय

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महाभारत के बाद से आधुनिक काल तक के सभी राजाओं का विवरण क्रमवार तरीके से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है...! आपको यह जानकर एक बहुत ही आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया था..... जिसका पूरा विवरण इस प्रकार है : ... क्र................... शासक का नाम.......... वर्ष....माह.. दिन 1. राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir)..... 36.... 08.... 25 2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit)........ 60.... 00..... 00 3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay).... 84.... 07...... 23 4 अश्वमेध (Ashwamedh )................. 82.....08..... 22 5 द्वैतीयरम (Dwateeyram )............... 88.... 02......08 6 क्षत्रमाल (Kshatramal)................... 81.... 11..... 27 7 चित्ररथ (Chitrarath)...................... 75......03.....18 8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya)............... 75.....10.......24 9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain)......... 78.....07.......21 10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain).......78....07........21 11 भुवनपति (Bhuwanpati).....

प्रकाश की गति का आकलन - ऋग्वेद

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वेदों में देवताओं की स्तुति हेतु अनेक ऋचाएँ पढ़ने के लिए मिलती हैं। ऋग् वेद में सूर्य की स्तुति के लिए एक ऋचा हैः तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कुदसि सूर्य। विश्वमाभासि रोचनम् इस ऋचा को पढ़कर सायनाचार्य ने टिप्पणी के रूप में सूर्य की एक और स्तुति लिखी, जो इस प्रकार हैः तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥ यहाँ पर "द्वे द्वे शते द्वे" का अर्थ है "2202" और "एकेन निमिषार्धेन" का अर्थ "आधा निमिष" है। अर्थात सूर्य की स्तुति करते हुए यह कहा गया है कि सूर्य से चलने वाला प्रकाश आधा निमिष में 2202 योजन की यात्रा करता है। आइए योजन और निमिष को आज प्रचलित इकाइयों में परिवर्तित करके देखें कि क्या परिणाम आता हैः अब तक किए गए अध्ययन के अनुसार एक योजन 9 मील के तथा एक निमिष 16/75 याने कि 0.213333333333333 सेकंड के बराबर होता है। 2202 योजन = 19818 मील = 31893.979392 कि.मी. आधा निमष = 0.106666666666666 सेकंड अर्थात् सूर्य का प्रकाश 0.106666666666666 सेकंड में 19818 मील (31893.979392 कि.मी.

गॉड पार्टिकल यानी ब्रह्म कण का जिक्र वेदों में

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यूरोपीय वैज्ञानिकों ने जिस हिग्स बोसॉन से मिलते-जुलते कण को खोजने का दावा किया है उसका व बिग बैंग सिद्धांत का सबसे पहला जिक्र वेदों में आता है। वैज्ञानिकों ने हिग्स बोसॉन को गॉड पार्टिकल यानी ब्रह्म कण का नाम दिया है। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद में वर्णित नासद सूक्त में प्राचीन मानव और अंतरिक्ष को समझने की उसकी मूलभूत जिज्ञासा का पता चलता है। नासद सूक्त में कहा गया है कि सृष्टि से पहले कुछ भी नहीं था, न आकाश था, न जमीन, न जल। इस श्लोक में ब्रह्म की चर्चा करते हुए बताया गया है कि सृष्टि से पहले ब्रह्म ही विद्यमान थे और उन्हें से सारी सृष्टि का विकास हुआ है। वैज्ञानिकों का बिग बैंग सिद्धांत भी इस समझ को अधिक विस्तृत बनाते हुए कहता है कि 13.7 अरब वर्ष पहले समूचा अंतरिक्ष एक पिन की नोक के बराबर के बिंदु पर केंद्रित था। बिग बैंग कहलाने वाले इस महाविस्फोट के बाद इस बिंदु में विस्तार होता चला गया जिसने अंतरिक्ष का आकार लिया। हमारा अंतरिक्ष अभी भी फैल रहा है। अंतरिक्ष के सृजन के साथ ही हिग्स बोसॉन अस्तित्व में आया जिससे नक्षत्रों, ग्रहों, आकाशगंगाओं और जीवन का भी सृजन संभव हो सका। वेदों